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पत्र विशालपुर ज्योतिरंडपुर परिष्योधपुर अश्वपूर रत्नपुर इत्यादि अनेक नगरीके स्वामी बड़े विद्याधर ||
मंत्रियोंसहित महाप्रीतिके भरे गवण पैपाए सोरावण राजावोंका सन्मान करताभया जैसे इन्द्र देवोंका करें हैं शस्त्रबाहन वक्तरादि युद्ध की सामग्री. सब गजावों को देता भया चारहजार अबोहणी रावमाक होतीभई और दोहजार अक्षाहणी रामके होती भईसो कौनभांति हजार अक्षौहणीदल तो भामंडलका और हजार मुग्रीवादिकका सर्बभांतिसुग्रीव और भामंडलये दोऊमुख्य अपने मंत्रियों सहित तिनसों मंत्रकर राम लक्षण युद्धको उद्यमी भए अनेक वंश के उतजे अनेक आचरनके धरणहारे नानाजातियों से युक्त नाना प्रकारगुण क्रियासे प्रसिद्ध नानाप्रकार भाषाके बोलनहारे विद्याधरराम श्री रावण पे भेलेभए गौतमस्वामी राजा श्रेणिक से कहे हैं हे राजन पुण्य के प्रभाव से मोटे पुरुषों के बैरी भी अपने मित्र होय हैं और पुण्यहीनों के चिरकाल के सेवक और प्रति विश्वासके भाजन वेभी विनाश काल में शत्रु रूप होय परणवे हैं इस असार संसारमें जीवोंकी विचित्रगतिहै सोविचित्रगति जानकर यह चिंतवन करना किमेरे भाई सदासुखदाई नहीं तथा मित्र बांधव सबही सुखदाई नहीं कभी मित्र शत्रु होजांय कभी शत्रु मित्र हो। जाय ऐसे विवेकरूप सूर्य के उदयसे उरमें प्रकाशकर वुद्धिवंतोंको साधर्मही चिंतवना।इतिपचावनवा पर्व।
अयानन्तर राजा श्रेणिक गौतम स्वामीको पूछताभया, हे प्रभो अचौहिणीका परिमाण श्राप कहो तब गौतमका दूजा नाम इन्द्रभूतहे सो इंद्रभूत कहतेभए, हे मगधाधिपति अक्षौहिणीका प्रमाण तुझे संक्षेप से कहे हैं सो सुन आगम में पाठभेद कहे हैं वे सुनोप्रथम भेद पति दूजा भेद सेना तीजा भेद सेनामुख चौथा गुल्म पांचमा वाहिनी छठाप्रतना सातवां चमू आठवां अनीकिनी सो अब इनके यथार्थ भेद मुन ।
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