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पन
॥६५॥
जायका वृत्तान्त कहा उसही समय वनके दाह शांति होयबे का और मुनि उपसर्ग दूर होनेका वृत्तांत राजा गन्धर्व सुन हनूमान पै आया विद्याघरों के योग से वह बन नन्दन बन जैसाशोभतो भया और राजा गन्धर्व हनुमान के मुख से श्रीरामका किहकंधापुर विराजने का वृत्तान्त सुन अपनी पुत्रियों सहित श्रीराम के निकट पाया पुत्री महा विभूति कर राम को परणाई राम महा विवेकी ये विद्याघरों की पुत्री और महाराज विभूति कर युक्त हैं तथापि सीता बिना दशदिशा शून्य देखतेभए समस्त पृथिवी गुणवान जीवोंसे शोभित होय है और गुणवन्तों विना नगर गहनबन तुल्य भासे है कैसे हैं गुणवान जीव महा मनोहर है चेष्टा जिनकी और अति सुन्दर हैं भाव जिनके ये प्राणी पूर्वोपार्जित कर्मके फलसे सुख दुःख भोगवेहैं इसलिये जो सुखके अर्थी हैं वे जिनरूप सूर्यसे प्रकाशाजो पवित्रजिनमार्ग उसमें प्रवृते हैं। इति५१ सं. . अथानन्तर महा प्रताप कर पूर्ण महाबली हनुमान जैसे सुमेरुको सौम जाय तैसे त्रिकूटाचल कों चला सो आकाश में जाती जो हनूमानकी सेना उसका महा धनुषके श्राकारमायामई यंत्रकर निरोध भया तव हनूमान ने अपने समीपो लोकों से पूछा जो मेरी सेना कोन कारण आगे चल न सके यहां गर्व का पर्वत असुरों का नाथ चमरेन्द्र है अथवा इन्द्र है तथा इस पर्वत के शिखर पर जिन मन्दिर है अथवा चरमशरीरी मुनि हैं तब हनुमान के ये वचन सुनकर पृथुमति मन्त्री कहता भया हे देव यह क्रूरता संयुक्त मायामई यन्त्र है तब आप दृष्टिधर देखा कोटमें प्रवेश कठिन जाना मानों यहकोट विरक्त । स्त्री के मन समान दुःख प्रवेश है अनेक आकारको धरे वक्रता से पूर्ण महा भयानक सर्व भक्षी पूतली । | जहां देवभी प्रवेश न करसकें जाज्वल्यमान तीक्षपहें अग्र भाग जिनके ऐसे करोतोंके समूहकर मण्डित ।
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