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पराका
पिन रेखा दूजी विद्युत्प्रभा तीजी तरंगमाला सर्वगोत्रको वल्लभ सो जेते विजियार्ध विद्याधर राजकुमार हैं । ॥६३१॥ | ये सब हमारे विवाहके अथ हमारे पितासे याचना करते भये और एक दुष्ट अंगारक सो अति अभिलाषी:
निरन्तर कामके दाह कर पाताप रूप तिष्ठे एकदिन हमारेपिता ने अष्टांग निमित्तके वेत्ता जे मुनि तिन को पूछी हे भगवान मेरी पुत्रियों का वर कौन होयगा तब मुनिने कही जो रणसंग्राम में साहसगति का. मारेगा सो तेरी पुत्रियों का वर होयगा तब मुनिके अमोघ वचन सुनकर हमारे पिताने विचारी विजिया की उत्तरश्रेणी में श्रेष्ठ जो साहसगति उसे कौन मारसके जो उसे मारे सो मनुष्य इस लोक में इन्द्र समान है और मुनि के बचन अन्यथा नहीं सो हमारे माता पितो और सकल कुटम्ब मुनि के बयन पर हा भए और अंगारक निरन्तर हमारे पितासे याचनाकरे सो पिताहमको न देय तब वह अति चिन्तावान दुःख रूप वैर को प्राप्त भया ओर हमारे यही मनोरथ उपजा जो वह दिन कब होय हम सहसगति के हनिवार को देखें सो मनोगामिनी नामविद्या साधिवे को इस भयानक बनमें आई सो हमको बाखां दिन ।
और मुनियों को पाठमा दिन है आज अंगारकने हम को देख क्रोध कर वन में अग्नि लगाई जो छह । वर्ष कछु इक अधिक दिनों में विद्या सिद्ध होय हमको उपसर्ग से भय न करबे कर बारहही दिन में विद्या सिद्धभई इस आपदा में हे महाभाग जो तुम सहाय न करते तो हमारा अग्नि कर नाश होता और मुनि भस्म होते इसलिये तुम धन्य धन्य हो तब हनुमान कहतेभये तुम्हारा उद्यम सफलभया जिनके निश्चय होय तिनको सिद्धहोयही धन्य निर्मल बुद्धि तुम्हारी बड़े स्थानक में मनोरथ धन्य तुम्हारा भाग्य ऐसा || कहकर श्रीराम के किहकंधापुर श्रावने को सकल वृत्तान्त कहा और अपने रामकी आज्ञा प्रमाण लंका
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