SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 626
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पद्म पुराण ॥६१५॥ अनेक स्त्री विद्याधरी खड़ी ही रहे नाना प्रकार के वस्त्र सुगन्ध श्राभूषण जिनके हाथमें भान्ति भान्ति की चेष्टा कर सीको प्रसन्न किया चाहें दिव्यगीत दिव्यनृत्य दिब्यवादित्र अमृत सारिखे दिव्यवचन उन कर सीता को हर्षित किया चाहें परन्तु यह कहां हर्षितहोय जैसे मोक्ष संपदाको अभब्य जीव सिद्ध न कर सके तैसे रावण की दूती सीता को प्रसन्न न कर सकी। ऊपर ऊपर रावण दूती भेजे कामरूप दावानल की प्रज्वलित उसकर ब्याकुन महाउन्मत्त भांति भांति अनुराग के वचन सीता को कह पठावे यह कछू जवाब नहीं देय दूती जाय रावण सो कहै हे देव वह तो अाहार पानी तज बैठी है तुमको कैसे इच्छे वह काहू सो बात न करे निश्चल अंगकर तिष्ठे है हमारी ओर दृष्टिही नहीं धरे अमृत सेभी अति स्वादु दुग्धादि कर मिश्रित बहुत भांति नाना प्रकार के व्यञ्जन उसके मुख आगेधरे हैं सो स्पर्शनहीं। यह दूतियों की बात सुन रावणखेद खिन्न होय मदनाग्निकी ज्वाला करे व्याप्त है अंग जिसका महा आरतरूप चिन्ता के सागर में डूबा कबहुं निश्वास नांपेकबहूँ सोच करे सूक गया है मुख जिसका कभीकछु इकगावे कामरूप अग्नि कर दग्ध भयाहै हृदय जिसका कछुइकविचार निश्चल होयरहे अपना अंग भूमिमें डार देय फिर उठे सूनासा होयरहे बिनासमझे उठचले फिरपीले प्रावे जैसे हस्तीसूण्ड पटके तैसेभूमिमेंहाथ पटकेसीता को बारबार चितारता आंखोंसे प्रांसू डारे कबहूंशब्द कर बुलावेकभी हुंकार शब्द करे कभी चुप होयरेह कभीवृथाबकवादकोकभी सीतारबार २बके कभी नीचामुखकरनखोंसे धरती कुचरेकभी हाथ अपने हिय लगावे कभी बाहू ऊंचाकरे कभी सेजपर पड़े कभी उठबैठे कभी कमल हिये लगावे कभी दूर डारदेय | कभी शृंगारकी काव्य पढ़े कभी आकाशकी ओर देखे कभी हाथसे हाथ मसले, कभी पगस पृथिवी || For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy