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पुराण
।।६१२॥
प्रमद तिनमें प्रकीणक पृथिवी पर उसके ऊपर जनानन्द जहां चतुर जन क्रीड़ा करें और तीजा सुखसेब्य अतिमनोग्य सुन्दर वृक्ष और बेल कारी घटा समान सघन सरोवर सरिता वापिका अतिमनोहर और समुच्चय में सूर्य का श्राताप नहीं वृक्ष ऊंचे कहूं ठौर स्त्री क्रीड़ा कर कहूं और पुरुष और चारपप्रिय बनमें चारण मुनि ध्यान करें और निबोध ज्ञान का निवास सबों के ऊपर अति सुन्दर प्रमद नामा बन उस के ऊपर जहां तांबूल को बेल केतिकियों केबीडे जहां स्नानक्रीड़ा करने को उचित रमणीक वापिका कमलों करशोभित हैं और अनेक खणके महल और जहां नारंगी विजोरा नारियल छुहारे ताड़ वृक्ष इत्यादि अनेक जाति केवृक्ष सर्व ही वृक्ष पुष्पों के गुच्छों कर शोभे हैं जिनपर भ्रमर गुञ्जार करे हैं और जहां बेलों के पल्लव मन्द पवन कर हले हैं जिस बन में सघनवृक्ष समस्त ऋतुवों के फल फूलोंकर युक्त कारी घटा समान सघन हैं मोरों के युगल कर शोभित है उस बन की विभूति मनोहर बापी सहस्रदल कमलहै मुख जिनके सो नील कमल नेत्रों कर निरपे हैं और सरोवर में मन्द मन्द पवनकर कल्लोलउठे हैं सो मानों सरोवरी नृत्य ही करे हैं और कोयल बोले हैं सो मानों वचनालाप ही करे हैं और राज हंसनीयों के समूहकर मानों सरोवर हँसेही हैं बहुत कहिबे कर क्या वह प्रमदनामा उद्यान सर्व उत्सव का मूल भोगों का निवास नन्दनबन से भी अधिक उस बन में एक अशोकमालिनी नामा वापी कमलादि कर शोभित जिसके मणि स्वर्ण के सिवाण विचित्र आकार को धरे द्वार जिसके और मनोहर महल जिस के सुन्दर झरोखे तिनकर शोभित जहां नीझरने झरे हैं वहां अशोकवृक्ष के तले सीता राखी कैसी है सीता श्रीराम जी के वियोग कर महाशोक को घरे है जैसे इन्द्र से विछुरी इन्द्राणी, रावण की प्रज्ञा से ।
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