________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Wyceu
साधन की कथा में अनुरांगी रात्रि दिन धर्म में उद्यमी होता भयो ॥ इति बत्तीसवां पर्व सम्पूर्णम् ॥ __ अथानन्तर श्रीरामचन्द्र लक्ष्मण सीता जहां एकतापसों का आश्रम है वहां गए अनेक तापस जटिल नानाप्रकारके वृत्चोंके वकल पहिरे अनेक प्रकारका स्वादुफल तिनकर पूर्ण हैं महाजिनके बनविषे बृक्षसमान बहुत मठ देखे विस्तीर्ण पत्रों कर छाए हैं मठ जिनके अथवा घासकेछलों कर पाशादितहें निवास जिनके विना बाहे सहजही उगेजे धान्य वे उनके आंगनमें सूके हैं और मृगभयरहित वांगन में वेठे जुगालेहें और तिनके निवास विषे खूवा मेंमा पढ़े हैं और तिनके मठों के समीप अनेक गुलक्यारी लगाय राखी हैं सोतापसों की कन्या मिष्ट जल कर पूर्ण जे कलश वे थांवलों में डारें हैं श्री रामचन्द्र को श्राए जान तापस नाना प्रकारके मिष्ट फल सुगन्ध पुष्पामष्ट जल इत्यादिक सामग्रियों कर बहुत आदरसे पाहुन गति करतेभए मिष्ट चचनका संभाषण कर रहने को कुटी मृदुपल्लवन की शय्या इत्यादि उपचार करते भए वे तापस सहजही सबों का आदर करें हैं इनको महारूपवान अद्भुत पुरुषजान बहूत आदर किया रात्रि को बस कर ये प्रभात उट चले तब तापस इन की लार चले इनके रूप को देखकर पाषाण भी पिघलें तो मनुष्य की क्या बात वे तापस सूके पत्रों के आहारी इनके रूपको देख अनुरागी होतेभए जे बृद्धतापस हैं वे इनको कहतेभए तुमयहां रहोतो यहसुखका स्थान है और कदापि न रहो तो इस अटवी विषे सावधान रहियो यद्यपि यहबनी जल फल पुष्पादि कर भरी है तथापि विश्वास न करना, नदी वनी नारी ये विश्वास योग्य नहीं, सो तुम तो सब बातों में सावधान ही हो फिर राम लक्ष्मण सीता यहां से आगे चले अनेक तापसिनी इनके देखनेकी अभिलाषाकर बहुत विहल भई ।
For Private and Personal Use Only