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पा | और इंद्रधनुष जाते रहे पृथ्वी कर्दम रहित होय गई शवऋतु मानों कुमुदोंके प्रफुल्लित होनेसे हंसती ।
हुई प्रकटभई विजुरियोंके चमत्कारकी संभावनाही गई सूर्य तुला राशिपर पाया शरदके श्वेत बादरे कहूं २ ! दृष्टि आने सो चणमात्रमें विलय जांय निशाम्प नवोड़ा स्त्री संध्याके प्रकाशरूप महा सुन्दर लाल |
अधरोंको धरे चांदनीरूप निर्मल बसोंको पहरे चन्द्रमाक्प हे चूडाममि जिसका सो अत्यन्त शोभती | | भई और वापिका निर्मल जखमी भरी मनुष्यों के मन को प्रमोद उपजाक्ती भई चकवा कवीके युगल | || को में केलि जा और मलोमतवे मासिवे को अाह जहां कमलों के वनमें प्रमते जो राजहंस अत्यंत |
शोभाको पो हैं सो सीताको चिन्ता जिसके प्रेमा ब्रो आमंडल से यहातु सुहावनी न लगी अग्नि । समान भास हे जग जिसको एक दिन यह भामंडल बज्जाको ललकर पिताके आगे बसंतप्तज नासा जो परममित्र बसे कहता भया केसाई भामंडल असबसे प्रति अंग जिसका भित्रको कहे है हे मित्र तू दीर्घशोची है और परकार्यमें उखपीएतोडिन होगाम तुझे मेरीक्षितानहीं याकुलतारूप भूमण । को रे जो प्राशारूप समुद्र उसमें में इलाहूं मुझे झालंजन क्यों न देवो ऐसे अार्तिध्यानकर युक्त भा. मंडलके बचन सुन राजसभाके सर्वलोक सभा रहित विवाद संयुक्त होगाखन विनको महा शोककर वप्तायमान देख भामण्डल लज्जासे भयो मुख हो गया तब एक वृहत्केतु नामा विद्याधर कहताभया अब क्या छिपाव राखो कुमारसे सर्व वृतांत यथार्थ कहो जिससे भांति न रहे तब वे सर्व वृतांत भामंडलसे कहते भए कि हे कुमार हम कन्याके पिताको यहांले आएये कन्याकी उससे याचना करी सो उसनेकहीं में कन्या रामको देनीकरीहे हमारे और उसके बार्गबहुत भई वह न माने तब वनावर्त ।
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