SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 456
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुराण ४४१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुन पृथिवीपतिगया जिसकी विभूति पृथिवीको आनन्द की उपजावनहारी वर्षों पर्यन्त व्याख्यान करिये तो भी न कह सकिए जो मुनि गुण रूप रत्नों का सागर जिस समय इसकी नगरीके समीप द्यावे उसही समय इसको खबर होय जो मुनि आये हैं तबही यह दर्शन को जाय सो सर्वभूतहित मुनिको तिनके निकट केते समीपी लोगों सहित गया हथिनी से उतर अति हर्षका भरा नमस्कार कर महा भक्ति संयुक्त सिद्धांत सम्बन्धी कथा सुनताभया चारों अनुयोगोंकी चरचा धारी और अतीत अनागत वर्तमान के कालके जे महापुरुष तिनके चरित्र सुने लोकालोकका निरूपण और छह द्रव्योंको स्वरूप छह कायके जीवोंका वर्णन छह लेश्याका व्याख्यान और बहों कालका कथन और कुलकरों की उत्पत्ति और अनेक प्रकार क्षत्रियादिकों के वंश और सप्त तत्व नव पदार्थ पञ्चास्तिकायका वर्णन आचार्य के मुख से श्रवण कर सर्व मुनियों को बारम्बार नमस्कारकर राजा धर्मके अनुरागसे पूर्ण नगरमें श्राये जिन धर्म गुणोंकी कथा निकटवर्ती राजाओं और मंत्रियोंसे कर और सबको बिदाकर महलमें प्रवेश करता. भया विस्तीर्ण है विभव जिसके और राणी लक्ष्मी तुल्य परमकांतिकर सम्पूर्ण चंद्रमासमान संपूर्ण सुंदर बदनकी धरणहारी नेत्र और मनकी हरणहारी हाव भाव विलास विश्वमकर मंडित महा निपुण परमविनय की करनहारी प्यारी वेई भईकमलाकी पंकि तिनकोराज सूर्यसमान प्रफुलित करताभया ॥ इति२६वांपर्वसं ० अथानन्तरमेघ आडम्बरकर युक्त जो वर्षाकाल सो गया और व्याकाशसंभारे खडग के समान निर्मल भया पद्म महोत्पल पुण्डरीक इंदीवरादि अनेक जातिके कमल प्रफुल्लित भए कैसे हैं कमलादि पुष्प विषयी. जीवों को उन्मादके कारणहैं और नदी सरोवरादिमें जल निर्मल भया जैसा मुनिका चित्त निर्मलहोय तैसा For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy