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कार्य होय सो करो यह तम्हारा शरीरहें तो सबही मन र्वाचित कार्य होंगे इस भान्ति राणी विदेहा जो पुराण प्राण ह से प्रिया सो कहती भई तब राजा बोले हे प्रिये हे शोभने हे वल्लभे मुझे खेद औरही है तू वृथा
ऐसी बात कही, काहेको अधिक खेद उपजावे है तुझे इस वृतांतकी गम्यता नहीं इसलिये ऐसे कहे है वह मायामई तुरंग मुझे विजिया गिरिमें लेगया वहां रथनूपरके राजा चन्द्रगतिसे मेरा मिलापभया सो उसने कही तुम्हारी पुत्री मेरे पुत्रको देवो तब मैंने कही मेरी पुत्री दशरथके पुत्र श्रीगमचन्द्रको देनी करी है तब उसने कही जो रामचन्द्र वज्रावर्त धनुष को चढ़ावें तो तुम्हारी पुत्री परणे नातर मेरा पुन परणेगा सो मैं तो पराये वश जाय पड़ा तब उनके भय थकी और अशुभकर्म के उदय थकी यह बात प्रमाण करी सो बज्रावर्त और सागरावर्त दोनों धनुष ले विद्याधर यहां आए हैं वे नगर के बाहिर तिष्ठे हैं, सो में ऐसे जानूं हूं ये धनुष इन्द्र से भी चढ़ाए न जावें जिनकी ज्वाला दशों दिशा में फैल रही है
और मायामई नाग फुकारें हैं सो नेत्रों से तो देखा न जावे धनुष बिना चढ़ाए ही स्वतः स्वभाव महाभयानक शब्द करे हैं इनकोचढ़ायवे की कहांवात, जो कदाचित् श्री रामचन्द्र धनुष को न चढ़ावें तो यह विद्याधर मेरी पुत्री को जोरावरीले जावेंगे जैसे स्याल के समीप से मांस की डली खग कहिये पक्षी लेजाय सो धनुष के चढ़ायवे का बीस दिन को करार है जो नवना तोवह कन्या को ले जावेंगे, फिर इसका देखना दुर्लभ है, हे श्रेणिक जबराजा जनकने इसभान्ति कही तवराणी विदेहाके नेत्रअश्रुपात्रसे भराए और पुत्र के हरनेका दुःखभूलगई | थी सो याद आया एक तो प्राचीनदुःख और दूसराआगमी दुःख सोमहाशोककर पीडित भई महाशब्द कर पुकारने लगी ऐसा रुदनकिया जो सकल परिवारके मनुष्य विहुलहोगये राजासे राणी कहे है हे देव मैंने
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