________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तुम राम लक्ष्मणका एता प्रभावही कहोहो और वृथा गरजगरज बात करो हो सो हमारे उन के पुराख बल पराक्रमकी प्रतीति नहीं इसलिये हम करे हैं सो मुनो एक बज्रावर्त दूजा सागरावर्त ये दो धनुष ५४३३
जिनकी देव सेवा करें हैं सो ये दोनों धनुष वेदोनों भाई चढ़ावें तो हम उनकी शक्ति जाने बहुत कहने से क्या जो वजावर्त धनुष राम चढ़ावें तो तुम्हारी कन्या परणे नातर हम वलात्कार कन्याको यहां ले आयेंगे तुम देखतेही रहोगे तब जनकने कही यह बात प्रमाणहै तब उन्होंने दोनों धनुष दिखाए सो जनक उन धनुषोंको अति विषम देखकर कछुइक पाकुलताको प्राप्त भया फिर वे विद्याधर भाव थकी भगवानकी पूजा स्तुतिकर गदा और हलादि रखोंकर संयुक्त धनुषोंकोले और जनककोले मिथिलापुरीमाए
और चंद्रगति उपवनसे रथनूपुरग्याजवराजाजनक मिथिलापुरीश्राए तपनगरीकी महाशोभाभई मंगला चार भए और सबजन सन्मुखाए और वे विद्याधरनगर के बाहिर एक आयुध शालावनाय वहांधनुप
घरे और महागर्भको धरते संते तिष्ठे जनकखेद सहित किंचित भोजन खाय चिंता कर व्याकुल उत्साह | रहित सेज पर पडे वहां महा नमी भूत उत्तम स्री बहुत आदर सहित चंद्रमा की किरण समान
उज्जल घमरदारती भई राजा अतिदीर्घ निश्वास महा उष्ण अग्निसमान नाषे तब राणी विदेहाने कहा हे नाथ तुमनेकोन स्वर्ग लोक की देवांगना देखी जिसके अनुराग कर ऐसी अवस्था को प्राप्त भए हो । सो हमारे जाननेमें वह कामनी गुण रहित निर्दई है जो तुम्हारे अातापविषे करुणा नहीं करेहे हेनाथवह स्थानक हमें बताको जहाँसे उसे ले अावें तुम्हरे दुःख कर मुझेदुःख और सकल लोको को दुःख होय है तुम ऐसे महा सौभाग्यवन्त उसे क्यों न रुचे वह कोई पाषाण चित्त है उठो राजाओं को जे उचित
For Private and Personal Use Only