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ऐसा कौन पाप किया जो पहिले तो पुत्र हरा गया और अब पुत्री हरी जाय है मेरे तो स्नेह का अवलम्बन पुराण | एक यह शुभ चेष्टित पुत्री ही है मेरे तुम्हारे सर्व कुटम्ब लोकों के यह पुत्री ही आनन्द का कारण है सो | मुझपापिनीके एकदुःख नहीं मिटे है और दूजा दुःख पाय प्राप्त होय है। इस भान्ति शोक के सागर में पड़ी
रुदन करती हुई राणी को राजाधीर्य बंधाय कहतेभए हे राणी रुदन कर क्या क्योंकि जो पूर्व इस जीव ने कर्म उपाजें हैं उनके उदय अनुसार फले हैं, संसाररूप नाटकका प्राचार्यजो कर्म सो समस्त प्राणियोंको नचावे है तेरा पुत्रगयासो अपने अशुभके उदयसे गया, अवशुभ कर्म उदयहै तो सकल मंगल ही होवेंगे,
ऐसे नाना प्रकारकेसार वचनोंकर राजाजनक ने राणी विदेहा को धीर्यबंधाया तब राणी शान्ति को प्राप्तभई॥ । अथानन्तर राजा जनक ने नगर के बाहिर धनुरशाला के समीप जाय स्वयम्वर मंडप रचा और | सकल राजपुत्रों के बुलायरेको पत्र पठाए सोपत्र बाँचबांच सर्व राजपुत्र पाए और अयोध्या नगरी | को भी दूत भेजे सो माता पिता संयुक्त रामादिक चारों भाई आएराजा जनक ने बहुत अादर कर पूजे सीता परम सुन्दरी सात से कन्याओं के मध्य महिल के ऊपर तिष्ठे बड़े वडे सामंत रक्षा करें और एक पंडित खोजा जिसने बहुत देखी बहुत सुनी हे स्वर्ण रूप बेतकी छड़ी उसकेहाथ में सो ऊंचे शब्दकर कहे है प्रत्येक राजकुमार को दिखाबे है हे राजपुत्री यह श्रीरामचन्द्र कमल लोचन राजा दशरथके पुत्र हैं तू नीके देख और यह इनका छोटा भाई लक्ष्मीवान् लक्ष्मण है महाज्योति को घरे और यह इनका भाई महा बाहु भरत है और यह इससे छोटा शत्रुघन है यह चारों ही भाई गुणों के सागर हैं इनपुत्रों कर राजा दशरथ पृथिवी की भली भान्ति रक्षा करे है जिसके राज्य में भय का अंकुर भी नहीं और यह हरिबाइन महा।
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