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॥३१॥
बिजलीका तेज सर्व दिशा विषेविचरे हैं मेघ नेत्रकर जलपूरित तथा नू पूरित स्थानकको देखे है और । नानाप्रकारके रंगको घरी हुई इन्द्रधनुषसे मंडित श्राकाश ऐसा शोभता भया मानों अति ऊंचे तोरणों। कर युक्तहै और दोनों पालि ढाहती महाभयानक भ्रमणको घर अतिवेगकर युक्त कलुषतासंयुक्त नदी बहे हैं सो मानों मर्यादा राहत स्वछन्द स्त्रीके स्वरूपको अाचरे हैं और मेघके शब्दकर त्रासको प्राप्त भई मृगनयनी विरहिणी वे स्तम्भन स्पर्श करे हैं और महाविव्हल हे पति के प्रावने की आशा विष लगाएहैं नेत्र जिन्होंने ऐसे वर्षाकाल विषे जीवदयाके पालनहारे महाशांत अनेक निग्रंथ मुनिप्राशुक स्थानकविषे चौमासालेय तिष्ठे और जे गृहस्थी श्रावक साधुसेवा विष तत्पर वेभी चार महीना गमनका त्याग कर नानाप्रकारके नियमधर तिष्ठे ऐसे मेघकर व्याप्त वर्षाकाल विषे वे पिता पुत्र यथार्थ प्राचारके आचरने हारे प्रेतवन अर्थात् मसानविषे चार महीना उपवास धर वृक्षके तले विराजे कभी पद्मासन कभी कायो त्सर्ग कभी बीरासन आदि अनेक आसनधर चातुर्मास पूर्ण किया वह प्रेतवन वृक्षोंके अन्धकार कर महागह है और सिंह ब्याघ्र रीछ स्याल सर्प इत्यादि अनेक दुष्ट जीवोंसे भराहै भयंकर जीवोंको भी भयकारी महा विषमहै गीध सिचाना चील इत्यादि जीवोंकर पूर्ण हो रहाहै अर्धदग्ध मृतकोंका स्थानक महा भयानक विषम भूमि मनुष्योंके सिरके कपाल के समूहकर जहां पृथिवी श्वेत हो रही है और दुष्ट शब्द करते पिशाचों के समूह विचरे हैं और जहां तृणजाल कंटक बहुत हैं सो ये पिता पुत्र दोनों धीरबीर पवित्र मन चार महीना वहां पूर्ण करते भए। __अथानन्तर वर्षा ऋतु गई शरद ऋतु आई सो मानों रात्रि पूर्ण भई प्रभात भया कैसाहै प्रभात
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