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जगत के प्रकाश करने में प्रवीण है शरद के समय आकास में बादल श्वेत प्रकट भए और मूर्य पुरान
मेघ पटल रहित कांति से प्रकाश मान भया जैसे उत्सर्पणी काल के जो दुःखम काल उस के अन्त में दुखमा सुखमा के आदि ी श्री जिनेन्द्र देव प्रकट होंय और चन्द्रमा रात्री विषे तारावोंके समूह के मध्य शेभता भया जैसे सरोवर के मध्य तरुण राजहंस शोभे और रात्रि में चन्द्रमा की चांदनी कर पृथिवी उज्ज्वल भई सो मानों चीर सागर ही पूथिवी में विस्तर रहा है और नदी निर्मल भई कुरिच सारस चकवा आदि पक्षी मुन्दर शब्द करने लगे और सरोवरों में कमल फूले जिन पर भूमण गुंजार करे हैं और उडे हैं सो मानों भव्य जीवों ने मिथ्यात्व परिणाम तजे हे सो उडते फिरे हैं (भावार्थ) मिथ्यात्व का स्वरूप श्याम और भूमर का भी स्वरूप श्याम अनेक प्रकार सुगन्ध का है । प्रचार जहाँ ऐसे जे ऊंचे महल तिनके निवासमें रात्रि के समय लोक निज प्रियाओं सहित क्रीड़ा करें हैं || शरद् ऋतु में मनुष्यों के समूह महा उत्सव कर प्रवरते हैं सनमान किया है मित्र बान्धवों का जहां
और जो स्त्री पीहर गई तिनका सासरे श्रागमन होय है कातिक शुदी पूर्णमासी के व्यतीत भए पीछे । तपोधन जे मुनि वे तीर्थों में विहार करते भए तब ये पिता और पुत्र कीर्ति घर सुकौशल मुनि समाप्त भया है नियम जिनका शास्त्रोक्त ईर्ष्या समति सहित पारणा के निमित्त नगर की ओर विहार करते भए और वह सहदेवी सुकौशल की माता मरकर नाहरी भई थी सो पापिनी महा क्रोध से भरी लोडू
कर लाल हैं केशों के समूह जिस के विकराल है वदन जिसका तीक्षण हैं दंत जिसके कषाय रूपपीतहें | नेत्र जिसके सिरपर घरा है पूंछ जिसने नखों कर विदार, अनेक जीव जिसने और किएहें भयंकर शब्द
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