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पुराण
अथानन्तर पुरन्दर राज्य करहे उसके पृथिवीमती राणी कीर्तिधरनामा पुत्रभया सोगुणोंका सागर पृथिवी विषे विख्यात वह विनयवान अनुक्रमकर यौवनको प्राप्तभया सर्व कुटुम्बको आनन्दबढ़ावताहुवा अपनी सुन्दर चेश से सबको प्रियभया तब राजा पुरन्दरने अपने पुत्रको राजा कौशलकी पुत्री परणाई
और इसको राज्यदेय राजा पुरन्दरने गुणही हे भाभपण जिसके चेमकर मुनिके समीप मुनिबतघरे कर्म निर्जरा का कारण महा तप प्रारम्भा ।
अथानन्तर राजा कीर्तिधर कुल क्रम से चला आया जो राज्य उसे पाय जीते सब शन जिसने । देवोंसमान उत्तम भोग भोमतावा रमताभया एक दिवस राजाकीर्तिघर प्रजाका बन्धु जे प्रजाके वाधक शत्रु तिनको भयंकर सिंहासन विषेजैसे इन्द्र विराजे तैसे विगजें थेसो सूर्यग्रहण देख चित्तमें चितवले भए कि देखो यह सूर्य जो ज्योतिका मंडलहै सो राहुके विमानके योगसे श्याम होयगया यह सूर्य प्रताप का स्वामी अंधकारको मेट प्रकाश करे है और जिसके प्रतापसे चन्द्रमाका बिम्ब कांति रहित भासे हैं और कमलोंके बनको प्रफुल्लित करे है सो राहुके बिमानसे मन्दकांति भास है उदय होताही मूर्य ज्योति रहित हो गया इसलिये संसारकी दशा अनित्यहै यह जगतके जीव विषयाभिलाषी रंक समान मोह पाश से बन्धे अवश्य कालके मुख में पड़ेंगे ऐसा विचार कर यह महा भाग्य संसार की अवस्था को क्षणभंगुर जान मन्त्री पुरोहित सेनापनि सामन्तोंसे कहता भया कि यह समुद्र पर्यन्त पृथ्वीके गज्य की
तुम भली भांति रक्षा करियो मैं मुनिके ब्रत धरूंहूं तब सवही बिनती करते भए हे प्रभो तुम बिन यह । पृथ्वी हमसे दबे नहीं तुम शत्रुवोंके जीतनहारे हो लोकोंके रक्षकहो तुम्हारी वयभी नवयौवन है इसलिये ।
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