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प के परम उत्साह के भरे नग्न मुद्रा घरतेभए ओर वृत्तान्त देख ववाहुकी स्त्री मनादेवी पति के और भाई ॥३२॥ के स्नेह से मोहित हुई मोह तज आर्यिका के व्रत धरती भई सर्व वस्त्राभूषण तज कर एक सफेद साढ़ी
घारती भई महा तप व्रत आदरे यह वज्रवाहुकी कथा इसका दादा जो राजा विजय उसने सुनी सभा के मध्य बैठाथा सो शोक से पीड़ित होय ऐसे कहता भया यह अश्चर्य देखो कि मेरा पोता नवयौवन विषय विष जान विरक्त होय मुनिभ्या और मो सारिखा मूर्ख विषयों का लोलुपी बृद्ध अवस्थामें भी भोगोंको न तजताभया सो कुमारने कैसे तजे अथवा वह महाभाग्य जो भोगोंको तृणवत् तजकर मोक्ष के निमित्त शान्त भावों में तिष्ठा में मन्दभाग्य जराकर पीड़ितहूं सो इन पापी विषयोंने मुझे चिरकाल उगा कैसे हैं यह विषय देखनेमें तो अति सुन्दर हैं परन्तु फल इनके प्रति कटुक हैं मेरे इन्द्रनील मणि समान श्याम जे केशोंकेसमूहथे सो कफकी राशि समान श्वेत होगए जे यौवन अवस्थामें मेरेनेत्र श्या. मता श्वेतता अरुणतालिये अति मनोहरथे सो अब ऊंडे पड़गये और मेरा जो शरीर अति देदीप्यमान शोभायमान महाबलवान स्वरूपवानथासोअब बृद्धअवस्था विषे वर्षासेहता जो चिताम उससमानहोगया जे धर्म अर्थ काम तरुण अवस्था विषे भलीभांति सधे हैं सो जराकर मण्डित जे प्राणी तिनसे सघने विषम हैं धिक्कारहै मो पापी दुराचारी प्रमादीको जो में चेतन थका अचेतन दशाादरी यह झूठाघर झूठी माया झूठी काया ये झूठे बान्धव झूठा परिवार तिनके स्नेहसे भवसागरके भ्रमपमें भूमा ऐसा कहकर सर्वपरिवार से क्षमा कराय छोटा पोता जो पुरन्दर उसे राज्य देय अपने पुत्र सुरेन्द्रमन्यु सहित राजा विजयने वृद्ध | अवस्थामें निर्वाणघोष स्वामी के समीप जिनदीक्षा पादरी कैसा है राजा महा उदार है मन जिसका ॥
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