________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
पद्म
चुरात
॥३१९॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हैं सा अवश्य जन्मगा, ये जन्म और मरण मरहट का घड़ी समान हैं तिनमें संसारी जीव निरन्तर भ्रमे हैं यह जीतव्य बिजली के चमत्कार समान है तथाजलकी तरंग समान तथादुष्टसपका जिव्हा समानचंचल है यह जगत् के जीव दुःखसागर में डुब रहे हैं। यहसंसार के भोग स्वप्न के भोग समान असारहें जल के बुवा समान काया है सांझके रंग समान यह जगत्का स्नेह है औरयह यौवन फूलसमान कुमलाय जाय है यह तुम्हारा हंसनाभी हमको अमृतसमान कल्याणरूपः भया क्या हास्यसे जो औषधिको पीएता संगको न हरे अवश्य हरेही हर तुम हमको मोक्षमार्ग के उद्यमके सहाई भए तुम समान हमारे और हितु नहीं मैं संसारके श्राचारविषे आसक्त होयरहाथा सो वीतराग भावको प्राप्त भयो अब में जिनदाचाधरू हूँ तुम्हारा जा इच्छा होय सो तुम करो ऐसा कहकर सर्व परिवार से क्षमा कराय वह गुणसागर नामा मुनि तपड़ी है घन जिनके तिनके निकट जाय चरणारविन्दको नमस्कार विनयवान हाय कहता भया है स्वामी तुम्हारे प्रसाद से मेरा मन पवित्रभया अब में संसार रूप कीच से निकसा चाहूं हूं तब इसके 'वचन सुन गुरुने थाज्ञा बई तुमको भवसागर से पार करणहारी यह भगवती दीक्षा है कैसे हैं गरु सप्तम
स्थान से गुणस्थान आएहैं यह गुरुकी आज्ञा उर में धार वस्त्राभषण का त्याग कर पल्लव समान जे अपने कर तिनसे केशों का लौंचकर पल्यकासन धरता भया इस देहको विनश्वर जान देह • से स्नेह तजकर राजपुत्री को और राग अवस्थाको तज मोक्षकी देनहारी जा जिन दीक्षा सो अङ्गीकार करता भया और उदय सुन्दरको आदिदे बीस राजकुमार जिन दीक्षा घरतेभये कैसे हैं वे कुमार कामदेव समान है रूप जिनका तजे हैं राग द्वेष मद मत्सर जिम्होंने उपजा है वराग्यका अनुराग जिन
For Private and Personal Use Only