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पर यह इंद्र तुल्य राज्य कैयक दिन करो इस राज्यके पति अद्वितीय तुमही हो यह पृथ्वी तुमहीसे शोभा ।
यमानहै तब राजा बोले यह संसार अटवी अतिर्षि है इसे देख मुझे अतिभय उपजे है कैसी है यह भवरूप बन अनेक जे दु:ख वेई हैं फल जिनके ऐसे कर्मरूप वृक्षोंसे भरी है और जन्म जरामरण रोग शोक रति अरति इष्टवियोम अनिष्टसंयोगरूप अग्निते प्रज्वतिहै तब मंत्रीजनों ने रानाके परिणाम विरक्त आन बुझे अंमारों के समूह श्राय धरे और तिनके मध्य एक वैडूर्यमाण ज्योतिका पुंज अति अमोलिक लाय धरा सो मागके प्रतापसे कोयला प्रकाशरूप होगए फिर वह मणि उठाय लई तक वह कोइला नीके नलागे तब मंत्रियों ने रामआसे बिनती करी हे देव जैसे यह काष्ठके कोयलारनों बिना न शोभे हैं तैसे तुम बिन हम सबही न शोमोहे नाथ तुम विन प्रजाके लोक अनाथ मारे जायेंगे और ल्टे जायेंगे और प्रजाके नष्ट होते धर्मका प्रभाव होगा इस लिये जैसे तुम्हारा पिता तुम को राज्य देय मुनि भयाथा तेसे तुमभी अपने पुत्रको सज्य देय जिन दीचा परियो इसभांति प्रधान पुरुषों ने बिनती करी तब राजाने यह नियम किया कि जो मैं पुत्रका जन्म सुनूं उसही दिन मुनि त थरूं यह प्रतिज्ञाकर इन्द्र समान भोग भोगता भया प्रजाको साता उपजाय राज्य किया जिसके राज्य में किसी भांतिका भी प्रजाको भय न उपजा कैसाहै गजा समाधान रूपहै चित्त जिसका एक समय राणी सहदेवी राजा सहित शयन करती थी सो उसको गर्भ रहा कैसा पुत्र गर्भ में पाया सम्पूर्ण मुणोंका पात्र
और पृथिवी के प्रतिपालनकोसमर्थ सोजब पुनका जन्मभया तव राणीने पति के बैरागी होनेके मयसे पुत्रका | जन्म प्रकट न किया कैयक दिवस वार्ता गोप राखीजैसे सूर्यके उदयको कोई छिपाय नसके तैसे राजपुत्रका
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