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॥२३॥
पद्म प्राप्त होयहें जे इंद्रियों के विषय इस जीवने जगत्में अनंतकाल भोगे तिन विषयोंसे मोहित भया विरक्त पुराण
भावको नहीं भजे है यह बड़ा आश्चर्य है जो इन विषयों को विषमिश्रित अन्न समान जानकर पुरुषोतम काहये चक्रवर्ती श्रादि उत्तम पुरुष भी सेवे] । संसारमें भूमते हुवे इस जीवके जो सम्यक्त उपजे
और एकभी नियम प्रत साधे तो यह मुक्ति का बीज है और जिन प्राणधारियों के एक भी नियम नहीं वे पशु हैं.अयवा फूटे कलशहँ गुण रहित हैं । और जे भव्य जीव संसार समुद्रको तिराचाहे हैं वे प्रमाद रहित होय गुण और ब्रतोंसे पूर्ण सदा नियमरूप रहें जे मनुष्य कुबुद्धि खोटे कर्म नहीं तजे हैं
और व्रत नियमको नहीं भजे हैं वे जन्मके अन्धे की न्याई अनंतकाल भवबनमें भटके हैं इस भांति जे श्रीअनन्तवार्य केवली वेई भए तीनलोकके चन्द्रमा तिनके बचनरूप किरणके प्रभावसे देव विद्याघर भूमि गोचरी मनुष्य तथा तियच सर्वही श्रानंदको प्राप्त भए कई एक उत्तम मानवी मुनि भए तया श्रावग भए सम्यक्त को प्राप्त भए और कईएक उत्तम तिर्यंच भी सम्यक दृष्ट श्रावग अणुव्रत धारी भए और चतुरनिकायके देवोंमें कईएक सम्यक दृष्टि भए क्योंकि देवों के व्रत नहीं। ___अथानन्तर एक धर्मरथ नामा मुनि रावणको कहते भए हे भद्र कहिये भव्यजीव तृभी अपनी शक्ति प्रमाण कछु नियम धारणकर यह धर्मरत्नका दीप है और भगवान केवली महा महेश्वर हैं इस रत्न दीपसे कछु नियम नामा रत्न ग्रहणकर क्यों चिन्ताके भारके बश होय रहाहै महा पुरुषों के त्याग खद का कारण नहीं जैसे कोई रत्न द्वीपमें प्रवेश करे और उसका मन भ्रमेजो में कैसा रत्न लूं तैसे इस का | मन आकलित भया जोमें कैसावत लं यह रावण भोगासक्त सो इस के चित्त में यह चिन्ता उपजी।
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