________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
॥२२॥
प्रिय धर्म में जिसकी बुद्धि सदा आसक्तहै पृथ्वी में विख्यात है नाम जिसका उदार पराक्रमी महा पुराण || धनवान जिसके अनेक सेवक जैसे पूर्णमासी का चन्द्रमा तैसा कांतिधारी परम भोगों का भोक्ता
सर्व शास्त्र प्रवीण पूर्व धर्म के प्रभावसे ऐसा भया फिर संसारसे विरक्त होय जिन दीक्षा प्रादरी संसार को पार भया इसलिये जे साधुके थाहारके समयसे पहिले अाहार न करनेका नियम धारे हैं वे हरिषेणी चक्रवर्तीकी न्याई महा उत्सव को प्राप्त होय, हरिषेणी चक्रवर्ती भी इसही व्रतके प्रभावसे महा पुण्य । को उपार्जन कर अत्यन्त लक्ष्मी का नाथ भया ऐसेंही जे सम्यक दृष्टि समाधानके धारी भव्य जीव मुनिके निकट जायकर एकबार भोजनका नियमकरे हैं वे एक भुक्तिके प्रभावकर स्वर्गविमानविषयउपजे । हैं जहां सदा प्रकाशहै और रात्रिदिवस नहीं निदानहीं वहां सागरांपर्यंत अप्सराओंकेमध्य रमें हैं मोतियों के हार रत्नोंके कड़े कटिसूत्र मुकुट बाजूबन्द इत्यादि आभूषण पहरें जिनपर छत्र फिरें चमर ढुरें ऐसे देवलोकके सुखभोग चक्रवर्त्यादि पद पावे हैं उत्तमब्रतोंमें आसक्त जे अणुव्रतके धारक श्रावग शरीरको बिनाशीक जानकर शांत भयाहै हृदय जिनका अष्टमी चतुर्दशीका उपवास मन शुद्ध होय पोषह संयुक्त धारे हैं वे सौधर्मादि सोल्हवें स्वर्ग में उपजे हैं फिर मनुष्य होय भवबनको तजे हैं मुनिव्रतके प्रभाव | से अहिमिन्द्रपद तथा मुक्तिपद पावे हैं जे ब्रत गुणशील तपकर मंडितहैं वे साधु जिनशासनके प्रसाद | से सर्व कर्म रहितहोय सिद्धोंका पद पावे हैं । जे तीनोंकालमें जिनेंद्रदेवकी स्तुतिकर मन बचन काय ! कर नमस्कार करे हैं और सुमेरुपर्वत सारिखे अचल मिथ्या स्वरूप पवनकर नहीं चले हैं गुण रूप गहने पहरें शीलरूप सुगंध लगाएहैं सो कईएक भव उत्तमदेव उत्तम मनुष्यके सुख भोगकर परम स्थानको
For Private and Personal Use Only