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पद्म पुराख
कहे हैं और स्वर्गलोकके निवासी देव हाड मांसका भक्षणकरें तो देव काहेके जैसे स्वान स्याल काक तैसे 2091 वेभी भये ये वचन नारदनेकहे कैंसे हैं नारद देवऋषिहैं अनेकान्तरूप जिनमार्ग के प्रकाशिबेको सूर्यसमान
महा तेजस्वी देदीप्यमान है शरीर जिनका शास्त्रार्थ ज्ञान के निधान तिनको मन्दबुद्धि संवर्त कहां जीते सो पराभवको प्राप्तभया तब निर्दई क्रोध के भारकर कम्पायमान श्राशीविष सर्पसमान लाल हैं नेत्रजि सके | महा कलकलाटकर अनेक विप्रभेले होय लड़नेको कालकछ हस्तपादादिकर नारदके मारनेको उद्यमी हुए जैसे दिन का घूघू परचावें सो नारहभी कैयकोंको मुकासे कैयकोंको मुदगरसे कैयकों को कोहनी से मारतेहुये भ्रमण करते हुए अपने शरीररूप शस्त्रकर अनेकों को हता बहुत युद्धभया निदान यह बहुत
नारद केले सो सर्व गात्रमें अत्यन्त आकुलताको प्राप्तभये पक्षीकीन्याई बघकोंने घेरा श्राकाशमें उड़ने को असमर्थ भए प्राण संदेहको प्राप्तभए उससमय रावणकादूत राजा मरुतपै यायाथा सो नारदको घेरा देख पीछे जाय रावणसे कही हे महाराज जिसके निकट मुझे भेजाथा सो महा दुरजन हैं उसके देखते दिजोंने अकेले नारदको घेरा है और मारे हैं जैसे कीड़ीदल सर्पको घेरेसो में यहबात देख न सका सो आपको कहिनेको आयाहूं रावण यह बृतान्त सुन क्रोध को प्राप्तभया पवनसे भी शीघ्रगामी जे वाहन उनपर चढ़ चलनेको उद्यमी हुवा और नंगी तलवारों के धारक से सामन्त वे अगाऊ दौड़ाएँ सो एक पलकमें यज्ञशालामें जा पहुंचे सो तत्काल नारदको शत्रुवोंके घेरेसे छुड़ाया और निरदई मनुष्य जो पशु ओंको घेर रहेथे सो सकल पशु तत्काल बुड़ाये यज्ञके यूप कहिये स्तंभ तोड़ डारे और यज्ञके करावनहारे विप्र बहुत कूटे यज्ञशाला बखेरेडारी राजा को भी पकड़ लिया रावणने द्विजों से बहुत कोपकिया कि मेरे
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