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पुराण
पन राजमें जीव घातकरें यह क्या बात सो असे कूटे जो अचेत होय धरतीपर गिरपड़े तब सुभटलोक इनको ।
कहतेभये अहो जैसा दुख तुमको पुरालगे है और सुख भला लगे है तैसा पशुवोंकोभी जानो ओर जैसा ॥२०॥
जीतन्य तुमको बल्लभहै तैसासकल जीयोंको जानों तुमको कूटते कष्टोपहै तो पशुवोंको विनाशनेसे क्यों न होय तुम पापकाफल सहोगे नरकमें दुखभोगोगे सो घोड़ोंके सवारहाथी स्थोंके सवार तथा खेचर भूचर सबही पुरुष हिंसकोंको मारने लगे तब वे विलाप करनेसगे हमको छोड़ो फिरसा काम न करेंगे ऐसे दीन वचन कह विलाप करते भये और रावणका तिनपर अत्यन्तक्रोधसो छोड़ेंनहीं तब नारद महा दयावान सवणसे कहनेलगे हे राजन् ! तेराकल्याण होवे तेंने इन दुष्टोंसे मुझेछुड़ाया अब इनकीभी दयाकर जिनशासन में काहूंको पीड़ा देनी लिखी नहीं सर्व जीवोंको जीतव्य प्रियहे तैने सिद्धांतमें क्या यह बात न सुनी है किजो हुंडा सर्पणी काल विष पाखण्डियोंकी प्रवृति होयहै जबके चौथेकालके आदिमें भगवान ऋषभ प्रगटे तीन जगत्में उच्च जिनको जन्मतेही देव सुमेरुपरवत पर लेगये क्षीर सागरके जल से स्नान कराया वे महाकांतिके धारी ऋषभ जिनका दिव्य चरित्र पापोंका नाशकरनेहारा तीनलोकमें प्रसिद्धहै सो तँने क्या न सुना वेभगवान जीवोंके दयालु जिनके गुण इन्द्रभी कहनेको समर्थ नहीं वे वीतराग निर्वाण के अधिकारी इस पृथिवीरूप स्त्रीको तजकर जगत्के कल्याण निमित्त मुनिपदको आदरते भये कैसे हैं प्रभु निर्मल | है आत्मा जिनका कैसीहै पृथिवीरूप स्त्री जो विन्ध्याचल पर्वत और हिमाचल पर्वततेई हैं उतंगकुच जिसके
और प्रार्यक्षेत्रहै मुख जिसका सुन्दर नगर वेई चूडे तिनकरयुक्त है और समुद्र है कटिमेखला जिसकी | और जे नीलवन तेई हैं सिरके केशजिसके नाना प्रकारके जेरत्न वेई भाभषण हैं ऋषभदेवने मुनिहोयकर
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