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॥२०६३
पद्म पद दवा धर्मसे पाइये है तू कोई पुण्यके उदय कर मनुष्य हुवा ब्राह्मणका कुलपाया इसलिये पारधियोंके पुराणा कर्मसे निवृत्तिहो और जो जीव हिंसासे यह मानव स्वर्ग पावे है तो हिंसा के अनुमोदन से राजा वसु
नरक में क्यों पड़े जो कोई चूनका पशु बनायकर भी घात करेहै सोभी नरकका अधिकारी होय है तो सासात् पशु घातकी क्या बात अबभी यन्त्र के करण हारे ऐसा शब्द कहे हैं हो वसू उठ स्वग विषे जावो यह कहकर अग्नि में आहुति डारे हैं इस से सिद्ध हुवा कि वसु नरक में गया और स्वर्ग न गया इसलिये। हे संवर्तयज्ञ कल्पनासे कछु प्रयोजन नहीं और जो तू यज्ञद्दी करे तो जैसे हमकहें सोकर यह चिदानंद श्रात्मा सोतो जजमान नाम कहिये यज्ञका करणहारा और यह शरीरहे सो विनयकुण्ड कहिये होमकुण्ड और संतोष है सो पुरोडास कहियेयज्ञकी सामग्री और जो सर्वपरिग्रह सो हवि कहिये होमने योग्य वस्तु और मूर्धज कहिये केश वेई दर्भ कहिये डाभ तिनका उपारना लोंचकरना और जो सर्व जीवोंकी दया सोई दक्षिणा और जिसकाफल सिद्धपद ऐसा जो शुक्लध्यानसोई प्राणायाम और जो सत्यमहाव्रत सोई यूपकहिये यज्ञविषे काष्ठका स्थंभ जिससे पशुको बांधे हैं और यह चंचल मन सोई पशु और तप रूप अग्नि और पांच इन्द्रिय वेई समाधि कहिये ईंधन यह यज्ञ धर्मयज्ञ कहिये है और तुम कहोहो कि यज्ञकर देवोंको तृप्ति कीजियेहै सो देवनकैतो मनसा आहार है तिनका शरीर सुगंध है अन्नादिकहीका आहार नहीं तो मांसादिककी कहा बात कैसा है मांस महादुर्गघ जो देखा न जाय पिताका वीर्य माता का लहू उसकर उपजा कृमी की है उत्पत्ति जिसमें महा अभन सो मांस देव कैसे भरखें और तीन अग्नि या शरीरविषे | हैं एक ज्ञानाग्नि दूसरी दर्शनाग्नि तीसरी उदाराग्निसो इन्हींको आचार्य दक्षिणाग्नि गार्हपत्यश्राहवनीय
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