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पुराल
संयुक्त कोई रमणीक बन नहीं और गिरियोंकी सुन्दर गुफा नीझरणों की धरणहारी जहां बानरोंके समूह | क्रीड़ा करें सो नहीं, लाल मुखके वानरों तुमको यहां किसने बुलाया जो नीच तुम्हारे बुलावनेको गया उसका निपात करूं, अपने चाकरों को कही इनको यहां से निकाल देवो यह वृथाही विद्याधर कहावें हैं, यह शब्द सुनकर किहकन्ध अंधक दोनों भाई वानरध्वज महा क्रोध को प्राप्त भए जैसे हाथियों पर सिंह कोप करे, और इनकी समस्त सेनाके लोक अपने स्वामियों का अपवाद सुन विशेष क्रोधको प्राप्त भए कैयक सामन्त अपने दहिने हाथ से चावी भुजाको स्पर्श करतेभये पोर कैयक क्रोधके आवेश से लाल भए हैं नेत्र जिनके सो मानों प्रलयकालके उल्कापातही हैं मह्य कोपको प्राप्तभए कैयक पृथिवीविषे हृदः बांधी है जड़ जिनकी ऐसे कृत्यों को उखास्ते भए. वृक्ष फल और पल्लवको धारे हैं कैयक थंभ उखाहुने भयो और कैयक सामन्तों के अगले घाव भी क्रोध से फट गए तिनमें से रुधिर की धारा निकसती भई मामों उत्पात के मेघही बरसे हैं कैएक माजते. भए: सो दशों दिशा शब्दकर पूरित भई और कैयक योधा सिरके केश विकरालतेभए, मानों सत्रिही होय गई, इत्यादि अपूर्व चेयवोंसे बानरवंशी विद्याधरों कीसेमा समस्त विद्याधरोंके मारनेको उद्यमी भईहाथियोंसे हाथी घोड़ेसे घोड़े स्थोंसे रथ युद्धकरतेभये दोनों सेनामें महायुद्धप्रवरता, आकाशमें देवः कौतुक देखतेभये यह युद्धकी वार्ता सुनकर राक्षसवंशी विद्याधरोंके अधिपतिराजा सुकेश लंका के धनी वानरसंशियोंकी सहायताको पाए, राजासुकेश किहकन्ध और अन्धक
के परम मित्रमानों इनके ममोस्व पूर्णकस्ने कोही पाए हैं. जैसेभरतचक्रवर्ती के समय राजा अकम्पन | की पुत्री सुलोचमा के निमित्त अति जनामार का युद्ध भयातैसा यह यद्ध हुषा, यह स्त्रीही युद्ध
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