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पन | हे मेघ समान है ध्वनि जिसकी और संग्राममें जिसकी दृष्टि शत्रुमोंके सहारणेको समर्थ नहीं तो।
ताके बाण की चोंट कौन सहारे देव भी यासों युद्ध करणको समर्थ नहीं तो मनुष्योंकी तो क्या बात श्रति उन्नत इसका सिर सो तू पायनपर डार ऐसा कहा तोभी वह इसके मनमें न आया क्योंकि चितकी प्रवृति विचित्र है फिर धाय कहती भई हे पुत्री नाकार्धपुर का रक्षक राजा मनोजव राणी वेगिनी तिनका पुत्र महावल सभा रूप सरोवर में कमल समान फूल रहा है इसके गुण बहुत हैं गिनने में भावें नहीं यह ऐसा बलवान है जो अपनी भौंह टेढ़ी करणेसे ही पृथ्वी मंडल को वश कर है और विद्या बलसे अाकाश में नगर बसावे भोर सर्व ग्रह नक्षत्रादिक को पृथ्वी तलपर दिखावे चाहे तो एक लोक नवा और बसाय इच्छा करे तो सूर्य को चन्द्रमा समान शीतल कर पर्वतको चूर करडारे पवनको थांभे जलका स्थलकरडारेस्थलका जलकर डारे इत्यादि इसके विद्याबल वर्णन किये तथापि इसका मन इसमें अनुरागी न भया और भी अनेक विद्याधर धायने दिखाए सो कन्याने दृष्टि में न घरे तिनको उलंघि आगे चली जैसे चन्द्रमाकी किरण पर्वतको उघंले वह पर्वत श्याम होय जांय तैसे जिन विद्याधरोंको उलंघ यह अागे गई तिनका मुख श्याम हो गया सब विद्याधरों को उलंघ कर इसकी दृष्टि किहकंध कुमार पर गई ताके कंठमें बरमाला डारी तब विजयसिंह विद्याधरकी दृष्टि क्रोध भरी किहकंध और अंधक दोऊ भाइयों पर पड़ी विजयसिंह विद्याबल से गर्वितहै सोकिहकंध
और अंध्रकको कहता भया कि यह विद्याधरोंका समाज तहां तुम बानर किस लिये श्राए विरूपहै दर्शन तुम्हारा क्षुद्र कहिये तुच्छ हो विनय रहित हो इस अस्थानक में फलों से नमभूत जे वृक्ष उनसे
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