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पद्म
ऐसा कांपे जैसे पीपलका पत्र पवनसे कांपे महा मनोहर हारोंसे युक्त इसका सुन्दर वक्षस्थल जिस पुराण में लक्ष्मी निवास करे है तेरी इच्छा होय तो इसका बर तब इसको सरल दृष्टि कर देख आगे चली
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फिर वह धाय जो कन्या के अभिप्रायके जाननेहारी है बोली हे सुते यह इन्द्र सारिखा राजा बज्रशील का कुंवर खेचरभानु बज्रपंजर नगरका अधिपति है इसकी दोऊ भुजाओं में राज्य लक्ष्मी चंचल है तो निश्चल तिष्ठे है इसे देखकर और विद्याधर श्राज्ञा समान भासे हैं यह सूर्य समान भासे हैं एक तो मानकर इसका माथा ऊंचा है ही और रत्नोंके मुकटसे अतिही शोभे है तेरी इच्छा है तो इसके कंडमें माला डार तब यह कन्या कुमुदनी समान खेचरभानुको देख सकुच गई आगे चली तब धाय बोली हे कुमारी यह राजा चन्द्रानन चन्द्रपुरका घनी राजाचित्रांगद राणी पद्मश्रीका पुत्र इस का बक्षस्थल महा सुन्दर चंदनसे चर्चित जैसे कैलाशका तट चन्द्रकिरण से शोभ तैसे शोभ है उछले है किरणों के समूह जिसके ऐसा मोतियोंका हार इसके उरमें शोभे है जैसे कैलाश पर्वत उछलते हुवेनी झरनों के समूह से शोभ है इसके नामके अरसे वैरियोंका मन परम आनन्दको प्राप्त होय है और दुख आताप करि रहित होय है धाय श्रमाला से कहे है हे सौम्यदर्शन कहिये सुखकारी है दर्शन जिस जिसका ऐसा जो तू तेरा चित्त इसमें प्रसन्न होय तो जैसे रात्रि चन्द्रमासे संयुक्त होय प्रकाश करे है तैसे इसके संगमकर प्रल्हाद को प्राप्त हो तब इसमें इसका मन प्रीतिको न प्राप्त भया जैसे चंद्रमा नेत्रों को आनन्दकारी है तथापि कमलों को उस में प्रसन्नता नहीं फिर धाय बोली हे कन्या मन्दर कुंज नगरका स्वामी राजा मेरुकांत राणी श्रीरंभा का पुत्र पुरंदर मानों पृथ्वी पर इन्द्र ही अवतारा
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