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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पा ॥१०२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भए और वीजना करते हुवे तौभी लीला सहित महा सुन्दर रूप रूमाल से अपने मुखको क्यार करते भये और कैक वामेचरणपर दाहिना पांव मेलते भये राजाओं के पुत्र सुन्दर रूपवान हैं नवयौवन हैं कामकला में निपुण हैं दृष्टि तो कन्याकी भोर और पगके अंगुष्टसे सिंहासनपर कछू लिखते भये और एक महामणियों के समूहसे युक्त जो सूत्र कटिमें गाढ़ा बंधाही या तौभी उसे संवार गाढ़ा बांधते भये और एक चंचल हैं नेत्र जिनके निकटवर्तीयोंसे कोल कथा करते भए कै एक अपने सुंदर कुटिल केशोंको संभारते भए कैएक जापर भ्रमर गुंजार करे हैं ऐसे कमलको दाहिने हाथ से फिरावते भए मकरन्दकी रजविस्तारते भए इत्यादि अनेक चेष्टा राजाभोंके पुत्र स्वयम्बर मंडप में करते भए स्वयम्बर मंडप में बीन बांसुरी मृदंग नगारे इत्यादि अनेक बाजे बज रहे हैं और अनेक मंगलाचरण होय रहेहै बन्दीजनों के समूह सत्पुरुषों के अनेक चरित्र वरणन करे हैं उस स्वयम्बर मंडप सुमंगलानामा धाय जिसके एक हाथ में स्वर्ण की छड़ी एक हाथमें बेंतकी छड़ी कन्याको हाथ जोड महा विनय कर कहती भई कन्या नाना प्रकार के मा भूषणों कर सचात् कल्पवेल समान है है पुत्री यह मार्तंडकुण्डल नामा कुंवर नभष्तिलक के राजा चन्द्र कुण्डल राणी विमला तिनका पुत्र है अपनी कांति से सूर्य का भी जीतने हारा अति रमणीक है और गुणों का मण्डन है इसके सहित रमणे की इच्छा है तो इसको बर यह शस्त्र शास्त्रमें निपुण है तब यह कन्या इसको देख यौवनसे कछु इक चिगा जान आगे चली फिर धाय बोलीहे कन्या यह रनपुर के राजा विद्यांग राणी लक्ष्मी तिनका पुत्र विद्या समुद्र घात नामा बहुत विद्याधरोंका अधिपति इसका नाम सुन बैरी For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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