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पा
॥१०२॥
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भए और वीजना करते हुवे तौभी लीला सहित महा सुन्दर रूप रूमाल से अपने मुखको क्यार करते भये और कैक वामेचरणपर दाहिना पांव मेलते भये राजाओं के पुत्र सुन्दर रूपवान हैं नवयौवन हैं कामकला में निपुण हैं दृष्टि तो कन्याकी भोर और पगके अंगुष्टसे सिंहासनपर कछू लिखते भये और एक महामणियों के समूहसे युक्त जो सूत्र कटिमें गाढ़ा बंधाही या तौभी उसे संवार गाढ़ा बांधते भये और एक चंचल हैं नेत्र जिनके निकटवर्तीयोंसे कोल कथा करते भए कै एक अपने सुंदर कुटिल केशोंको संभारते भए कैएक जापर भ्रमर गुंजार करे हैं ऐसे कमलको दाहिने हाथ से फिरावते भए मकरन्दकी रजविस्तारते भए इत्यादि अनेक चेष्टा राजाभोंके पुत्र स्वयम्बर मंडप में करते भए स्वयम्बर मंडप में बीन बांसुरी मृदंग नगारे इत्यादि अनेक बाजे बज रहे हैं और अनेक मंगलाचरण होय रहेहै बन्दीजनों के समूह सत्पुरुषों के अनेक चरित्र वरणन करे हैं उस स्वयम्बर मंडप सुमंगलानामा धाय जिसके एक हाथ में स्वर्ण की छड़ी एक हाथमें बेंतकी छड़ी कन्याको हाथ जोड महा विनय कर कहती भई कन्या नाना प्रकार के मा भूषणों कर सचात् कल्पवेल समान है है पुत्री यह मार्तंडकुण्डल नामा कुंवर नभष्तिलक के राजा चन्द्र कुण्डल राणी विमला तिनका पुत्र है अपनी कांति से सूर्य का भी जीतने हारा अति रमणीक है और गुणों का मण्डन है इसके सहित रमणे की इच्छा है तो इसको बर यह शस्त्र शास्त्रमें निपुण है तब यह कन्या इसको देख यौवनसे कछु इक चिगा जान आगे चली फिर धाय बोलीहे कन्या यह रनपुर के राजा विद्यांग राणी लक्ष्मी तिनका पुत्र विद्या समुद्र घात नामा बहुत विद्याधरोंका अधिपति इसका नाम सुन बैरी
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