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___ एक बार ज़रूर पढ़िये । पाठक महाशय !
- यह आपका पवित्र धर्मशास्र है। हस्तलिखित ग्रंथोंके समान आपको इसका विनय पूजन नमन करना चाहिये। यदि आप ऐसा न करेंगे और अन्यान्य छपी पुस्तकोंकी तरह इसकी अविनय दुर्दशा करेंगे, तो हम समझेंगे कि आप ग्रंथोंका नहीं किंतु
रुपयोंका विनय __ करते हैं। क्योंकि आपके मन में यह सिद्धांत घुसा हुआ है कि हस्तलिखितग्रंथ जितने आदरणीय होते हैं, उतने छपे हुए नहीं होते किंतु विचार पूर्वक देखा जाय तो पूज्यपना दोनोंमें समान है।
निवेदक-प्रकाशक ।
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