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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 63 (अभी) पुत्र हुआ है। अशोक ने उसका नाम सम्प्राति रख दिया। जब आर्य सुहस्ती उज्जियिनी सम्प्रतिको पूर्व जन्म का ध्यान हुआ और वे आर्यसुहस्ती के भक्त और श्रमण बच गये । सम्प्राति के नगर में चारों ओर भोजनशालाएं स्थापित की। यह साधुओं के लिये भी थी । आर्यहस्ती जानते थे कि इस प्रकार का अन्य साधुओं के लिये अग्राह्य है तब भी शिष्य सम्प्राति के मोह में उसका समर्थन दिया । श्वेताम्बर साहित्य में स्थूलभद्र द्वितीय को शकटार पुत्र कहा है । शकटार के पुत्र स्थूलभद्र का नाम तो क्या, संकेत भी दिगम्बर जैन ग्रंथों और जैनेत्तर साहित्य में नही है। केवली गौतम वसुधर्मा श्रुतकेवलि भद्रबाहु तक महावीर युग का प्रसार है, क्योंकि भगवान महावीर के 170 वर्षों तक श्रमण परम्परा और जैन संघ सुव्यवस्थित रहा। श्रुतकेवली का नाम दोनों परम्पराओंश्वेताम्बरों और दिगम्बर में है, किन्तु समय का भेद है। दिगम्बर परम्परा इसे निम्नानुसार 162 वर्ष का काल मानते हैं। वा श्रुतवली विष्णु श्रुतकेवली नंदिमित्र www.kobatirth.org श्रुतकेवली अपराजित श्रुतकेवली गोवर्द्धन श्रुतकेवली भद्रबाहु 1. सुधर्मा 2. जम्बू 3. प्रभव 4. श्वयभत 5. यशोभद्र 6. संभूतविजय 7. भद्रबाहु 12 वर्ष 20 वर्ष 38 वर्ष 14 वर्ष 16 वर्ष 25 वर्ष 17 वर्ष 29 वर्ष 162 वर्ष श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार 170 वर्ष निम्नानुसार है । 20 वर्ष 44 वर्ष 11 वर्ष 23 वर्ष Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 50 वर्ष 8 वर्ष 14 वर्ष पंचम श्रुतकेवल भद्रबाहु का समय चंद्रगुप्त के समकालीन ठहरता है। स्मिथ ने स्वीकार किया है चंद्रगुप्त ने जैनमुनि का पद अंगीकार किया।' 1. Vincent Smith, History of India Part IX Page 146 Jain now disposed to believe that the tradition is probably true in livne on its main theme that Chandragupta really abdicted & became Jain ascetic. For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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