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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 55 कर्म से मुक्ति पाने के लिये मोक्ष प्राप्ति के लिये महावीर ने धर्म का उपदेश दिया। महावीर ने कहा, धर्म उत्कृष्ट मंगल है। अहिंसा, संयम, और तप उसके लक्षण है। जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है, उसके देवता भी नमस्कार करते हैं।' उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्णव, उत्तम शौर्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग और उत्तम आकिंचन्य तथा उत्तम ब्रह्मचर्य ये दसधर्म हैं, मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ। सब जीव मुझे क्षमा करें । मेरा सब प्राणियों के प्रति मैत्री भाव है। महावीर का धर्म आत्मवादी धर्म है। महावीर ने कहा, आत्मा ही वैतरणी नदी है, आत्मा ही कूटशाल्मली वृक्ष है, आत्मा ही कामदुग्ध धेनु है, आत्मा ही नन्दन वन है।' महावीर काआत्मवादी धर्म श्रेष्ठ जीवन मूल्यों पर आछुत है। महावीर ने कहा, क्रोध प्रीति को नष्ट करता है, मान विनय को नष्ट करता है, माया मैत्री को नष्ट करती है और लोभ सब कुछ नष्ट करता है। क्षमा से क्रोध का हनन करें, नम्रता से मन को जीतें, ऋजुता से माया को और संतोष को लोभ से जीतें। महावीर ने साधु के पंच महाव्रत और श्रावक के लिये पंच अणुव्रतों की उद्घोषणा की। महावीर ने अपरिग्रहवाद का उपदेश दिया। महावीर ने कहा, जीव परिग्रह के निमित्त हिंसा करता है, असत्य बोलता है, चोरी करता है, मैथुन का सेवन करता है और अत्यधिक मूर्छा करता है। जैसे हाथी को वश में रखने के लिये अंकुश होता है, नगर की रक्षा के लिये खाई होती 1. समणसुत्तं, पृ 29 धम्मों मंगलमुक्खिटुं, अहिंसा संजयो तवो । देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो । 2. वही, 128-29 उत्तमखममद्धवज्जव-सच्चसउच्च ज संजमं चेव । तव चागम किंचण्हं बम्ह इदि दसविहो धम्मो ॥ 3. वही, पृ28-29 खम्मामि सव्वजीवाणं, सव्वे जीवा खमन्तु में। मित्ति में सच्चभूदेसु, वे मज्झं ण केण वि॥ 4. वही, पृ 39 अप्पा नई वेयरणी, अप्पा में कडसामली। अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा में नंदणं वणं ॥ 5. वही, पृ43 कोहो पीई पणासेद, माणो विणय नासणो । माया मित्राणि नासेइ, लोहो सव्वविणासणो॥ 6. वही, पृ43 उवसमेण हणे कोहं, माणं, भद्दवया जिणे । मायं चऽज्ज भावेण, लोभं संतोसओ जिणे ॥ 7. वही, पृ44-45 संग निमित्तं मारइ, भणइ अलीअं करेइ चोरिकं । सेतइ मेहुण मुच्छं, अधरिमाणं, कुणइ जीवो । For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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