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गभ ट्ठि अस्स जस्स हिरणवुट्टी संकचणा पडिया।
तेणं हिरणगब्भो जयम्मि उवगिजरा उसभो । 'महाभारत' में शिव के साथ ऋषभ का नाम गिनाया है ':
ऋषभत्वं पवित्राणां योगिनां निष्कल: शिव: 'शिवपुराण' में शिव का आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के रूप में अवतार का उल्लेख है। ऋग्वेद और अथर्ववेद में ही नहीं, महाभारत, शिवपुराण, कूर्मपुराण, ब्रह्माण्ड पुराण आदि वैष्णव परम्परा के पुराण नाभिनन्दन ऋषभदेव की यशोगाथाओं से भरे पड़े हैं। पुराणों में इन्हें भगवान का आठवां अवतार माना गया है। मनुस्मृति में इनका यशोगान है। बौद्ध ग्रंथ आर्य मंजुश्री' में इनकी यशोगाथा है।
बौद्ध साहित्य के अनुसार भारत के आदि सम्राटों में नाभिपुत्र ऋषभ और ऋषभपुत्र भरत की गणना की गई है। इन्होंने हेमवंतगिरि हिमालय पर सिद्धि प्राप्त की। वे व्रतपालन में दृढ़ थे। वे ही निग्रंथ तीर्थंकर ऋषभ जैनों के आदि देव थे।
__ 'श्रीमद्भागवत' में ऋषभावतार का पूरा पूरा वर्णन है और उन्हीं के उपदेशों से जैनधर्म की उत्पत्ति बताई गई है। डॉ. आर.जी. भण्डारकर के अनुसार “250 ई. के लगभग पुराणों का पुनर्निर्माण होना प्रारम्भ हुआ और गुप्तकाल तक यह क्रम जारी रहा। इस काल में समय समय पर नये पुराण भी रचे गये।"
पुराणों की कथाओं को कपोल कल्पित नहीं माना जा सकता। श्रीमद्भागवत में स्पष्ट उल्लेख है कि नग्नश्रमणों का धर्म के उपदेश के लिये उद्भव हुआ।
भागवतकार के अनुसार सुन्दर शरीर, विपुल कीर्ति, तेज, बल, यश और पराक्रम आदि सद्गुणों के कारण महाराज नाभि ने उनका नाम ऋषभ रखा।' दिगम्बर परम्परा के ग्रंथों में ऋषभ का कई स्थानों पर वृषभदेव नाम उपलब्ध होता है। धर्मरूपी अमृत की वर्षा करने वाले हैं, इसलिये इन्द्र ने इनका नाम वृषभदेव रखा। चूर्णिकार के उल्लेखानुसार ऋषभका एक नाम काश्यप भी रखा गया।
1. महाभारत 14-18 2. शिवपुराण 4-47-47 3. आचार्य हस्तीमल जी म., जैनधर्म का मौलिक इतिहास, प्रथम खण्ड, पृ. 38
आर्य मंजुश्री 390-91-92 5. Dr. R.G. Bhandarkar, A Peep into Early Indian History, Part I, Page 56 6. श्रीमद्भागवत् पुराण 20-5-3
वर्हिषी तस्मिन्नेव विष्णुदत्त भगवान परमार्षिमि प्रसादितो नाभे प्रिय चिकीर्षया तदवरोधायने मरुदेव्यां धर्मान् दर्शयितु कामो वातरशनानां श्रमणाना मृषीण
मर्ह व मैकिना शुक्लया तनुवावतार ॥ 7. वही, 5-4-2, पृ. 556, (गोरखपुर संस्करण) 8. आवश्यक चूर्णि, पृ 151 9. जैनधर्म का मौलिक इतिहास, प्रथम खण्ड,921
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