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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 27 तरह हड़प्पा से प्राप्त मूर्तियाँ भी नग्न है, जिसमें एक शिव की मूर्ति मानी गई है और दूसरी को श्री रामचन्द्र जैसे पुरातत्वविद वृषभ तीर्थंकर की मूर्ति मानते हैं। उन्होंने अपने लेख में शिश्नदेवा का अर्थ नग्नदेवता माना है ।' हों । श्री रामधारी सिंह दिनकर के अनुसार भी मोहनजोदड़ो की खुदाई में योग के प्रमाण मिलते हैं और जैनमार्ग के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव थे, जिनके साथ योग और वैराग्य की परम्परा उसी प्रकार लिपटी हुई है, जैसे शक्ति कालांतर में शिव के साथ समन्वित हो गई । इस दृष्टि से कई जैन विद्वानों का यह मानना है कि ऋषभदेव वैदोल्लिखित होने पर भी वेदपूर्व हैं 12 प्रागैतिहासिक काल : आदि तीर्थंकर : 1. ऋषभदेव 1 जैनमत का प्रवर्तन प्रागैतिहासिक काल में आदि तीर्थंक ऋषभदेव के द्वारा हुआ । जैनमत अत्यधिक प्राचीन है। जैन अनुश्रुति के अनुसार मनु चौदह हुए। अंतिम मनु नाभिराम थे। उन्हीं के पुत्र ऋषभदेव हुए, जिन्होंने अहिंसा और अनेकान्तवाद का प्रवर्तन किया है। जैनपण्डितों का विश्वास है कि ऋषभदेव ने लिपि का आविष्कार किया तथा क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीन जातियों की रचना की । भरत ऋषभदेव के ही पुत्र थे, जिनके नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा । भगवान ऋषभदेव मानव समाज के आदि व्यवस्थापक और प्रथम धर्मनायक रहे हैं । ' वैदिक परम्परा के धर्मग्रंथ 'श्रीमद्भागवत' में भी प्रथम मनु स्वायंभुव के मन्वन्तर में ही उनके वंश अनी से नाभि ओर नाभि से ऋषभदेव का जन्म होना माना गया है। ऋग्वेद के 'रुद्रसूक्त' में कहा गया है कि हे वृषभ ! ऐसी कृपा करो कि हम कभी नष्ट न Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एवं वभ्रो वृषभ चेकितान यथादेव न हुणीये न हंसी । ' 'ऋग्वेद' के ऋषभदेव वृषभ हैं, धर्म के प्रतीक हैं और हिरण्यगर्भ भी' - हिरण्यगर्भ समवतर्ताग्रे भूतस्थय जातः पतिरेक आसीत । स दाधार पृथ्वी द्याभुतिमां कस्मै देवाय हविषा विधेय ॥ ऋग्वेद का हिरण्यगर्भा वास्तव में कौन है, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है हिरण्यगर्भ शब्द लाक्षणिक है, यह महान् शक्तियों का प्रतीक है, किन्तु जैन मान्यता के अनुसार ऋषभदेव हिरण्यगर्भा है। 'महापुराण' में भी ऋषभदेव को हिरण्यगर्भा माना गया है । " 1. पं कैलाशचंद्रशाली, जैन साहित्य का इतिहास, पृ 106 2. आजकल, मार्च, 1962, पृ. 8 3. रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय, पृ. 146 4. आचार्य हस्तीमल जी, जैनधर्म का मौलिक इतिहास, प्रथम खण्ड, पृ9 5. वही, पृ. 14 6. ऋग्वेद, 2-33-15 7. वही, पृ. 2-33-16 8. महापुराण 1-68 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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