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नागाभरिष्ट पुत्रौ द्वौ वैश्यो ब्राह्मणत : गतौ 'महाभारत' के अनुसार यदि कोई वर्ण अपना कर्म त्याग कर दूसरी जाति के कर्म करता है, तो परजन्म योनि में प्राप्त होता है। जो ब्राह्मण ब्राह्मणत्व को प्राप्त करके क्षत्रिय धर्म से जीविका निर्वाह करते हैं, वे ब्राह्मणत्व से भ्रष्ट होकर क्षत्रिय योनि में जन्म ग्रहण करते हैं और जो बुद्धिहीन ब्राह्मण लोभ मोह के कारण वैश्यकर्म ग्रहण करता है, वह वैश्यत्व को प्राप्त कर परजन्म में वैश्यत्व ही हो जाता है, इसी प्रकार वैश्य शूद्र हो जाता है। ब्राह्मण अपने धर्म से भ्रष्ट होता होता शूद्रत्व को प्राप्त होता है।
यस्तु ब्रह्मत्वयुत्सज्य क्षात्मं धर्म निषेवते । ब्राह्मण्यात्स परिभ्रष्टः क्षत्म यौनो प्रजायते ॥ वैश्यकर्म च यो विप्रो लोभ मोह व्यपाश्रयः । ब्राहमण्यं दुर्लभं प्राप्य करोत्मल्चमति सदा । स द्विजो वैश्यतमेति वैश्या ता शूद्रतापियात् । स्वधर्मा प्रच्युतो विप्रस्तत: शूद्रत्व माप्नुते ॥
-महाभारत, अनुशासनवर्ण इस प्रकार प्रारम्भ में जाति या वर्ण का आधार कर्म था, जन्म नहीं। 'महाभारत' के अनुसार जिसमें वैदिक आचार देखे जाय, वह ब्राह्मण, जिसमें वह लक्षण नहीं है, वह शूद्र है। 'महाभारत' में मृग उवाच के अनुसार “इस लोक में वर्गों में कुछ भी विशेषता नहीं, सब संसार ही ब्रह्ममय है, मनुष्यगण प्रथम ब्रह्माजी द्वारा उत्पन्न होकर धीरे धीरे कर्मों से वर्गों में विभक्त हुए। जिन ब्राह्मणों में रजोगुण होकर काम भोगाप्रिय, क्रोध के वशीभूत होकर तथा साहसी और तीक्ष्ण होकर स्वधर्म का त्याग नहीं किया है, वे क्षत्रिय पन को प्राप्त हुए हैं, जिन्होंने रज और तमोगुण मुक्त होकर पशुपालन और कृषि काआश्रय करा लिया, वे वैश्यपन को प्राप्त हुए; जो तमोगुण युक्त होकर हिंसक लुब्ध सर्व कर्मोपजीवी मिथ्यावादी और शौच भ्रष्ट हुए, वे द्विज शूद्रत्व को प्राप्त
हुए।
_ 'छांदोग्य उपनिषद' के अनुसार जाति का आधार कर्म नहीं, जन्म है। यदि कर्म से ही वर्णविविभाग होता तो निरन्तर शस्त्रधारणकर्ता परशुरामजी क्षत्रियवर्ण में में गिने जाते और महात्मा द्रोणाचार्य और कृपाचार्य निरंतर यजुर्वेद के पारंगत होने से ब्राह्मणत्व से हीन होकर क्षत्रिय हो जाते।
_ 'मनुस्मृति' के अनुसार चारों वर्गों में समान जातिवाली अक्षय योनि स्त्रियों में विवाहपूर्वक अनुलोभ विधि अर्थात् ब्राह्मण से ब्राह्मणी में, क्षत्रिय से क्षत्रिया से जो संतान उत्पन्न होती है, वह अपने पिता की जाति की होती है। याज्ञवल्क्य ऋषि के अनुसार सवर्णों की सवर्णा
1. जाति भास्कर, पृ. 17 2. वही, पृ. 21-22 3. वही, पृ. 25 4. वही, पृ. 25
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