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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 343 परमार राजपूतों से निसृत ओसवंश के गोत्र परमार शब्द का अर्थ शत्रु को मारने वाला होता है, इसलिये इस वंश के राजपूतों का नाम क्षत्रियोचित कर्म से सम्बन्धित है। ज्यों ज्यों प्रतिहारों की शक्ति का ह्रास होता गया, परमारों का राजनीतिक प्रभाव अधिक बढ़ता गया। धीरे-धीरे इन्होंने मारवाड़, सिन्धु, गुजरात, वागड़ और मालवा आदि स्थानों में अपने राज्य स्थापित किये। ‘परान् मारतीति परमार:' अर्थात् शत्रुओं को मारने के कारण ही इन्हें परमार या बाद में प्रमार या पँवार कहा जाने लगा। कवि चन्दरबरदाई, सूर्यमल मिश्रण आदि कवियों ने इन्हें अग्निवंशी माना है। कर्नल टाड और डा. भण्डारकर आदि ने इन्हें विदेशी जातियों से उत्पन्न माना है, जो ठीक नहीं है। श्री हरनामसिंह मान ने इसे मौर्य वंश की शाखा माना है। सभी परमार स्वयं को सूर्यवंशी मानते हैं। डा. जगदीश सिंह गहलोत के अनुसार अग्नि वंश की भ्रांति उत्पन्न होने के कारण यह है कि इस वंश के महापुरुष का नाम धूम राज था। धूम (धुआं) अग्नि से उत्पन्न होता है, इसलिये इसे अग्निवंशी कहा जाने लगा। आबू के परमारों का कुलपुरुष धूमराज माना जाता है, परन्तु इसकी वंशावली उत्पल राज से प्रारम्भ होती है। प्रारम्भ में इन्हें सोलंकियों से संघर्ष करना पड़ा। इसकी चतुर्थ पीढ़ी में धरणी वराह में सोलंकी मूलराज ने आक्रमण किया, इसलिये इसने राष्ट्रकूट धवल की शरण ली जो धवल के 997 ई के शिलालेख में स्पष्ट है । इसके बाद धरणीवराह का अधिकार फिर से आबू पर हो गया। महिपाल का एक दानपत्र 1002 ई. का मिलता है। महिपाल का पुत्र धुंधक स्वतंत्र प्रकृति का व्यक्ति था। मारवाड़ के परमार नरेशों का क्रम निम्नानुसार है 1. सिन्धुराज 2. उत्पलराज 3. अरण्यराज 4. कृष्णराज। 5. धरणीवराह 6. महिपाल 7. धुंधुक 8. पूर्णपाल 9. कृष्णराज ॥ 10. ध्रुवभट 11. रामदेव 12. विक्रमसिंह 13. यशोध्वत 14. धारावर्ष 15. सोमसिंह 16. कृष्णराज || 17. प्रताप सिंह 18. विक्रमसिंह विक्रम का प्रपौत्र धारावर्ष आबू के परमारों में बड़ा प्रसिद्ध है। उसने 60 वर्ष राज किया। इसके 363 ई से 1219 ई तक के शिलालेख मिलते हैं। धारवर्ष का लड़का सोमसिंह गुजरात के सोलंकी राजा भीमदेव (द्वितीय) का सामन्त था। इसके समय में वस्तुपाल के छोटे भाई तेजपाल ने आबू में देलवाड़ा मंदिर का निर्माण करवाया। 1311 ई के आसपास आबू में परमार राज्य का अंत हुआ और चौहान राज्य की स्थापना हुई। 1. डा. जगदीशसिंह गहलोत, परमार वंश, 443 2. ओझा, राजपूताने का इतिहास, पृष्ठ 201-202 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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