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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 342 गद्दी पर बैठा । यह राज्य की रक्षा न कर सका। महमूद गजनी के आक्रमण से राजपाल टूट गया और उसने अग्नि में जलकर आत्महत्या की। इसके पश्चात् प्रतिहार साम्राज्य का कुछ अंश राज्यपाल के पुत्र त्रिलोचनपाल के अधीन रहा, इसके झूसी के 1084 ई. शिलालेख में मिलता है। 1019 में महमूद ने पुन: आक्रमण किया। महमूद गजनवी के आक्रमण के पश्चात् त्रिलोचनपाल के पास राज्य का कितना हिस्सा बचा, यह ज्ञात नहीं है। यह वंश कुछ समय तक घिसट कर चलता रहा। गजनवी से पराजय के बावजूद प्रतिहारों के शासन ने इस देश को बहुत कुछ दिया। कला की नयी विचारधारा पनपी। ओसिया के मंदिर अपने में विशिष्ट है। युद्ध में और शांति में दोनों ही दृष्टियों से प्रतिहारों का योग विशिष्ट रहा। इनके समकालीनों ने माना कि प्रतिहार राजाओं ने विष्णु के रूप में पाप से विश्व को मुक्त किया और गुणों की रक्षा की। प्ररिहार/प्रतिहार राजपूतों से निसृत गोत्र श्री भूतोड़िया के अनुसार प्रतिहारों/परिहारों से निसृत ओसवंश के गोत्र निम्नानुसार 1. चोपड़ा/कूकड़/गणधर/परिहार/कोठारी चोपड़ा 2. गांधी/सियाल 3. सांड 4. मंत्री (माहेश्वरी) 5. ऋषभकोठारी 6. कांकरिया 7. बंदा मेहता परिहार राजपूतों से निसृत ओसवंश के गोत्र (तालिका रूप में) गोत्र संवत आचार्य गच्छ 1. गुंदेचा 1026 देवगुप्तसूरि उपकेश 2. चोपड़ा 1156 जिनदत्तसूरि खरतर मण्डोवर कूकड़ 3. मण्डोवरा 955 सिद्धसूरि उपकेश मण्डोवर स्थान पावागढ पूर्व पुरुष रावलाधी कूकड़देव देवराज 1. Dr. Dashrath Sharma, Rajasthan Throuhg the Ages, Page 209. A new school of art came with existence the production of which reveal in their beauty same of the art compositions of their periods. Osia temples are in a class by themselves. 2. इतिहास की अमरबेल, ओसवाल, द्वितीय खण्ड, 424 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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