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पार्श्वनाथ वर छट्टे पट्टाम्बर । रत्नप्रभसूरि सूरिवार । आये मरुधर देश मझारी । उएश नगरे उग्र विहारी ||3|| शिष्य पांचसौ थे गुणवन्ता । मात दोमास तप आचरंता । कोई नहीं पुच्छे न अन्नपाणी । ज्ञान ध्यान तपस्या मन ठाणी राय जमात अही विष ग्रह्यो । सूरि समीप लाइने धर्यो । चरण प्रक्षाल नलछटकावे । तत्क्षण कुंवर सचेतन थावे |15|| राजा मंत्री नागरिक सारा । गुरु उपदेश शिर पै धारा । सात दुर्व्यसन दूर निवारी | सवालाख संख्या नरनारी |16|| जिनके गोत्र प्रसिद्ध अठारा। तातेड़ बापणा कर्णावट सारा ।
लाह गोत्र की रांका शाखा । मोरक्ष ते पोकरणा लाखा |17|| विरहट कूलहट ने श्री श्रीमाल । संचेती श्रेष्ठि उज्जमाल । आदित्यनाग चोरड़िया वाजे । भूरि भाद्र समदड़िया गाजे ||8|| चिंचड - देसरड़ा कुम्भट भेटी । कनौजिया डिडु लघुश्रेष्टि । चरड गोत कांकरिया आखा । लुंगगोत चंडालिया शाखा ||9|| सुघड़ दूधड़ ने घटिया गोत । ऐता आदृ ओसवंश उद्योत । महाजन संघ थाप्यो गुरुराय । दिन दिनवृद्धि अधिकी थाय ॥10॥ वीर संवत् के थे सीतर वर्ष । अपूर्व था उस संघ का दर्श । अमर यश: सूरीश्वर लिनो । धर्म कलि में स्थिरकर दिनो ||3|| आर्य छाजेड़ राखेचा काग। गरुड़ सालेचा भरी जिन माग । वाघरेचा कुंकुम ने सफला । नक्षत्र आभड़ बहुरी कला ॥12॥ छावत वाघमार पिच्छोलिया । हथुड़ियों ने शुभ कार्य किया । मंडोवरा मल गुंदेचा जाण । गच्छ उएश ऐते पहचान 111311 वड़ लिम शाखा विस्तरी । गणती तेनी को नहीं करी । भानुं ताप प्रचण्डमध्यान्ह । महाजन संघ को वडियो मान ||14|| तप्तभट्ट तातेड़ कहलाया । तोडियाणी आदि मन भाया । बीस शाखा विस्तरी । भाग्यरवि ने उन्नति करी ||15॥ बाप्पनाग प्रसिद्ध बाफणा । नाहटा जंघड़ा वैताला घणा । पटवा वालिया ने दफ्तरी । बावन शाखा विस्तरी ||16| करणावट की सुनिये बात । जिनसे निकली चौदह जात । वाह वास वल्लभी करे । शिलादित्य राजा से अडे ।।17।। कांगसी ने उत्पात मचायो । वल्लभी को भंग करायो । शंका बांका नाम कमायो । जाति रांका सेठ पद पायो ||18|| छवींस शाखा पृथक कही । समय उन्नति को मानो सही । मोरक्ष गोत पोकरणा आदि । सत्तरा शाखा भाग्य प्रसिद्ध ||19|| कुलहट शाखा सूरवा कहांजी । जाति अठारह प्रकट को जाणी ।
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