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काला-पीला, आकृति चिपटी तथा नाक चौड़ी और पसरी हई होती है। इनके चेहरे पर दाढी मँछ भी कम उगती है। ये मंगोल जाति के लोग हैं।
इस प्रकार अत्यन्त प्राचीन काल में आर्य, द्रविड़, आदिवासी और मंगोल इन चार जातियों से भारतीय जनता की रचना हुई। हम जिन्हें आदिवासी कहते हैं, उनके बीच नीग्रो और आस्ट्रिक नामक उन जातियों के लोग शामिल हैं, जो द्राविड़ जातियों से पूर्व इस देश में आई थी। इसी प्रकार मंगोल जाति वालों का भी प्राचीन नाम किरात है।'' डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी ने भी माना है कि मंगोल जाति के लोग आर्यों के आगमन के पूर्व भारत में बस चुके थे, क्योंकि किरात नाम आर्यों के प्रारम्भिक साहित्य में ही मिलने लगता है।
भाषा की दृष्टि से भी इस देश में चार भाषा परिवार हैं। 1. मंगोल जाति के लोगों की भाषा तिब्बती चीनी परिवार की भाषा है। 2. द्रविड़ परिवार की भाषा तमिल, मलयालम, कन्नड़ और तेलगु है।
3. हिन्दी, उर्दू, बंगला, मराठी, गुजराती, उड़िया, पंजाबी, असमी, गोरखाली और कश्मीरी आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ हैं।
4. आदिवासियों की भाषाएं आस्ट्रिक और आग्नेय भाषा समूह की भाषाएं है।
डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी ने लिखा है कि भारतीय जनता की रचना जिन लोगों को लेकर हुई है, वे मुख्यत: तीन भाषाओं में विभक्त किये जा सकते हैं - अर्थात् आस्ट्रिक अथवा आग्नेय, द्राविड़ और हिन्द योरोपीय (हिन्द जर्मन)। श्री जयचंद्र ने एक सूक्ति कही है “भारतवर्ष की जनता मुख्यत: आर्य और द्रविड़ नस्लों की बनी हुई है, उसमें थोड़ी सी छौंक शबर और किरात (मुण्ड और तिब्बत बर्मी) की है।" इस प्रकार रक्त, भाषा और संस्कृति सभी दृष्टियों से भारत की जनता अनेक मिश्रणों से युक्त है। नीग्रो जाति के बाद आग्नेय, आग्नेय के बाद द्रविड़ और द्रविड़ के बाद आर्य इस देश में सांस्कृतिक समन्वय का कार्य शुरू होता है। वस्तुत: शैवशाक्त, वैष्णव, जैन और बौद्ध, ये आर्य भी थे और द्रविड़ भी।
पाश्चात्य विद्वानों में कई विद्वान भी दूर पर वे एक ही खानदान का मानते हैं। श्री बी.एस. गुहा की छोटी सी पुस्तक "रेस अफीनिटीज ऑफ द पीपल्स ऑफ इण्डिया' की समीक्षा करते हुए कहा कि सर आर्थर कीथ ने सन् 1936 में लिखा कि सीमाप्रान्त के पठानों और त्रावणकोर की वन्य जातियों को मिलाने वाला सेतु अभी भी मौजूद है। लेकिन सभी विद्वान यही कहते जारहे हैं कि भारत में प्रजातिगत जो विभिन्नताएँ हैं, वे इसी कारण है कि भारत के सभी लोग बाहर से आए हैं, यह देखने की किसी ने कोशिश ही नहीं की कि भारत की वे जातियाँ कौन कौन हैं, जिनका उद्भव और विकास भारत में हुआ।
1. रामधारी सिंह दिनकर, संस्कृति के चार अध्याय, पृ. 30 2. वही, पृ. 32 3. वही, पृ. 32 4. वही, पृ.43
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