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प्रसिद्ध इतिहासवेत्ता मुनि कल्याण विजय जी के अनुसार, 'संसेनियन राजा अर्दशिर ने भारत पर चढ़ाई करके सिन्धु तक के प्रदेशों पर अधिकार किया था। सम्भव है इस संसेनियन जाति के भारत पर आक्रमण के परिणामस्वरूप तक्षशिला का नाश हुआ हो और वहाँ के जैन लोग उस युद्ध लीला से पंजाब की ओर आ गए हों। मेरे विचार से ओसवाल जाति तक्षशिलाआदि पश्चिम के नगरों से निकले जैन संघ से निकली हो।'
'हूण तोरमाण का समय छठी शताब्दी का है, जब हूण तोरमाण ने भीनमाल को अपने अधिकार में कर लिया था। अत: हो सकता है छठी-सातवीं शताब्दी में हूणों के अत्याचारों के बाद ही ये लोग भटकते भटकते ओसी ग्राम में बसे हों।
__इस मनगढंत और तथाकथित ऐतिहासिक मत के विरुद्ध यह कहा जा सकता है कि हरिभद्रसूरि रचित 'समराइच्य कहा' ग्रंथ के अनुसार उस समय उएशनगर का अस्तित्व था। इस ग्रंथ में लिखा है कि उएश नगर के लोग ब्राह्मणों के कर से मुक्त थे। उनके गुरु ब्राह्मण नहीं थे। बस यहीएक प्राचीनतम प्रमाण है जो इस जाति का अस्तित्व विक्रम की आठवीं शताब्दी तक खींचतान कर पहुंचाता है। आचार्य हरिभद्रसूरि का समय सं 757 से 857 अर्थात् आठवीं और नवीं शताब्दी के बीच माना जाता है। 'समराइच्च कहा' में जो श्लोक आया है, वह निम्नानुसार है
तस्मात् उपकेशज्ञाति नाम गुरवो ब्राह्मण: नहीं। उएसनगरं सर्व कर ऋण समृद्धि मत् ॥ सर्वथा सर्व निर्मुक्त मुएसा नगरं परम् ।
तत्प्रमृति सजातिविति लोक प्रवीणम् ॥ श्री भण्डारी ने हरिभद्रसूरि का समय संवत् 530 से 585 के बीच माना जाता था, पर अब जैन साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान इस समय को संवत् 757 से संवत् 857 के बीच माना है। यदि इस मत को स्वीकार कर लिया जाय तो संवत् 757 के समय उएश जाति और उएश नगर बहुत समृद्धि पर थे और मानना भी अनुचित न होगा कि इस समृद्धि को प्राप्त करने में कम से कम 200 वर्षों का समय अवश्य लगा होगा। इस हिसाब से इस जाति की दौड़ विक्रम की पांचवीं शताब्दी तक पहुँच जाती है। इस मत से भण्डारी जी ने ओसवाल वंश के संस्थापक उत्पलदेव उत्पलराज को परमार मानने से अप्रत्यक्ष रूप से असहमति जता दी है, क्योंकि उस समय परमारों का अस्तित्व ही नहीं था।
एक शिलालेख संवत् 1587 का शत्रुजय तीर्थ पर आदीश्वर के मंदिर में है
- इतश्च गोपाह्व गिरौ गरिष्ट श्री बप्प भट्टी प्रतिबोधितश्च । श्री आमराजोऽजति तस्य पलि काचित्व भूवव्यवहारी पुत्री॥ तत्कुक्षिजाताः किल राजकोटा शाराह्व गौत्रे सुकृतैक पात्रे। श्री ओसवंश विशदि विशाले तस्यान्वयेऽश्रिपुरुष प्रसिद्ध ।
1. मुनि कल्याण विजय, प्रभाकर चरित्र प्रबन्ध पर्यायलोचन
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