SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 249 वहाँ प्रतिहारों का राज्य था।' इससे सिद्ध होता है कि उपलदेव ने दसवीं शताब्दी के आसपास शरण ली और उसने इसी काल में ओसियां बसाई। क्योंकि ग्यारहवीं शताब्दी में तो ओसियां में प्रतिहारों का राज्य था।' यह पुन: कल्पना की उड़ान भरते हैं, 'ऐसा लगता है कि प्रतिहारों से मतभेद हो जाने पर अथवा अपने पूर्व राज्य आबू पर पुन: अनुकूल परिस्थितियां हो जाने पर उप्पलदेव ने प्रतिहारों का उपकार मान कर स्वेच्छा से ओसियां छोड़ दो हो और स्वयं शक्ति प्राप्त कर पुन: अपना अधिकार जमा लिया हो।' कर्नल टाड ने माना कि नवीं शताब्दी के पूर्व परमारों का कोई बड़ा राज्य नहीं था। ओझा जी के अनुसार परमार धरणीशाह के पोते उप्पलदेव की मारवाड़ के परमारों ने दसवीं शताब्दी में शरण दी। ‘राजस्थान की जातियों की खोज' पुस्तक के लेखक ने माना कि विक्रम संवत् 885 में ओसियां परमारों का राज्य था। डॉ. डी.आर. भण्डारकर का भी कथन है कि परमार उप्पलदेव को परमारों ने नवीं शताब्दी में शरण दी। __ उप्पलदेव के अस्तित्व को जानने के लिये परिहारों की उत्पत्ति पर भी विचार किया जाय। बाहुकके राजा के घटियाला में शिलालेख मिले हैं, जो वि.स. 918 और वि.स. 941 के हैं। इन शिलालेखों से ज्ञात होता है कि हरिश्चन्द्र ब्राह्मण जो मण्डोर के राजा का ड्योडीदार था, उसकी राजपूत स्त्री से राजुल पुत्र उत्पन्न हुआ। इस राजुल ने शक्ति प्राप्त कर मण्डोर पर अपना अधिकार कर लिया। इस राजुल से ही परिहारों की उत्पत्ति मानी जाती है। ड्रयोडीदार की राजपूत स्त्री से उत्पन्न होने के कारण ये परिहार (प्रतिहार) कहलाए। राजल की बारहवीं पीढ़ी में बाहुक राजा हुआ। इस प्रकार 12 पीढ़ी का समय 200-250 वर्ष माना जा सकता है। इससे यह सहज सिंद्ध होता है कि परिहारों की उत्पत्ति आठवीं शताब्दी में हुई। अत: उप्पलदेव 8वीं शताब्दी में या उसके बाद ही मण्डोर में शरण लेने आया, उसके पूर्व नहीं। अत: उप्पलदेव ने ओसियां भी 8वीं शताब्दी या उसके बाद बसाई, इसके पूर्व नहीं, यह निश्चित है। घटियाला शिलालेख से यह भी ज्ञात होता है कि कुक्कुक मण्डोर का प्रतिहार शासक था, उसने वि.स. 918 में एक जैन मंदिर का निर्माण करवाया था। वस्तुत: उप्पलदेव परमार नहीं था। अनेकानेक विद्वानों और इतिहासकारों ने ओसवाल जाति के पूर्व पुरुष उप्पलदेव को परमार स्वीकार कर न जाने कितनी उड़ाने भर ली। इन विद्वानों ने 'उपकेशगच्छ पट्टावली' और भाटों और भोजकों के ओसवाल जाति के पूर्वपुरुष उपलदेव को इतिहास की वंशावलियों में ढूंढने की व्यर्थ कोशिश की। परमारों की वंशावली में उप्पलदेव को ढूँढकर कल्पना के रंगभर कर काल्पनिक कहानी गढ़ ली। ऐसे कोई प्रमाण नहीं कि उप्पलदेव परमार था। यह भी प्रमाणित नहीं कि वह कब रूष्ट होकर आबू से मण्डोर गया, कब मण्डोर के परिहार राजाओं से मिला, कब उसने ओसियां की स्थापना की। इस सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। केवल परमारों की वंशावली में उपलदेव नाम देखकर अपनी अपनी दृष्टि से विद्वानों ने काल्पनिक कहानी/कहानियाँ गढ़ ली। 1. ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ7 2. राजस्थान की जातियों की खोज, पृ.57 3. ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ9 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy