SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 248 7. इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा, श्री जगदीशसिंह गहलोत और श्री पूर्णचंद नाहर आदि विद्वानों ने उपलदेव को परमार ही माना है। 8. 'राजस्थान जातियों की खोज' में लिखा है कि वि.स. 885 में ओसियां में उप्पलदेव का राज्य था और यह परमार था। 9. 'जैन प्रश्नोत्तर' के अनुसार उप्पलदेव परमार था। 10. अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरातत्व के उद्भट विद्वान और वास्तुविद डा. डी.आर. भण्डारकर ने उपलदेव को परमार ही माना है।' __ ओसवालों की उत्पत्ति का आधारभूत ग्रंथ 'उपकेशगच्छ चरित्र' और 'उपकेशगच्छ पट्टावली' है। उपकेशगच्छ ने और ‘पार्श्वनाथ परम्परा का इतिहास' के लेखक श्री ज्ञानसुन्दर महाराज ने उपलदेव को परमार नहीं, सूर्यवंशी माना है। ___ 'उपकेशगच्छ पट्टावली' के अनुसार उप्पलदेव ने वि.स. 400 वर्ष पूर्व ओसियां बसाई और भाटों के अनुसार उपलदेव ने वि.स. 222 में ओसियां बसाई । यह सही है कि यदि उपलदेव को परमार माने तो न तो वह वि. 400 वर्ष या न वि.स. 222 वर्ष में ओसिया बसा सकता है, क्योंकि उस समय परमारों की उत्पत्ति ही नहीं हुई थी। ___ भंसाली जी की मान्यता है कि 'तीसरा मत इतिहासकारों का है, जो इतिहास के तथ्यों तथा परमार वंश के उपलब्ध शिलालेखों पर आधारित है। मारवाड़ के परमारों की श्रृंखलाबद्ध वंशावलियां उपलदेव से मिलती है। परमारों का मूल स्थान आबू था। यहाँ से ही ये लोग अलग अलग फैले । गुजरात, मारवाड़, आबू, भीनमाल आदि कई प्रदेशों पर परमारों का अधिकार रहा । इन परमारों के कई शिलालेख जोधपुर संभाग के जालौर, भडूंद, किराडू, दियाणा और आबू में मिले हैं। परमार कृष्णराज के से 1113 वि.स. और वि.स. 1123 के दो शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कृष्णराज के पिता का नाम धंधुक था। यह धंधुक आबू का राजा था। इसके पूर्णपाल और कृष्णराज दो पुत्र थे। संवत् 1098 के बसन्तगढ़ और सं. 1102 के भाडूंद के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि पूर्णपाल और पिता की गद्दी पर बैठा और कृष्णराज भीनमाल का राजा हुआ। परमारों के सम्बन्ध में दियाणा ग्राम के जैन मंदिरों में परमारों का वि.स. 1024 का सबसे पुराना अभिलेख मिला है। इसके अनुसार कृष्णराज के शासन में वीरप्रभु की मूर्ति प्रतिष्ठित करने का विवरण है। यह शिलालेख कृष्णराज परमार का समय निश्चित करने में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ है। यह कृष्णराज परमार उप्पलदेव का पौत्र था। इस प्रकार उप्पलदेव और कृष्णराज के बीच दो पीढी होती है। इस दो पीढी का समय सामान्यत: 50 वर्ष का होता है। इस प्रकार उप्पलदेव का समय दसवीं शताब्दी के आसपास माना जा सकता है। 'ओसियां के जैन मंदिर के सं 1013 के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि उस समय 1. आर्केलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, 1908-09, 1104 2. ओसवाल वंश, अनुसंधान के आलोक में, पृ4-6 3. जैन लेख संग्रह, पूर्णचन्द नाहर For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy