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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 226 मुहणौत नैणसी ने ओसवालों का संस्थापक परमार उपलदेव को मानकर इसका बीजारोपण कर दिया और फिर सभी लेखक इसी पूर्वाग्रह से भ्रम को आगे बढ़ाते रहे और उपलदेव को परमार मान कर तिल का ताड़ कर दिया। इसी ग्रंथ के कारण भाटों और भोजकों ने 18वीं और 19वीं शताब्दी में अपने कविता, पद्यों में उपलदेव को परमार ही मान लिया। ओसवाल जाति को राजपूतों की विरासत मिली। राजपूतों ने सदैव भाटों/चारणों को प्रश्रय दिया है। इसी कारण राजस्थान के प्रत्येक क्षेत्र में भाटों ने अपने बहियों में ओसवाल जाति के विभिन्न गोत्रों की वंशावलियों को समय समय पर अंकित करने का कार्य किया है। इन भाटों ने दानदाताओं की प्रशस्ति में छन्दों की रचना की है। इस पेशेवर जाति का यही पीढ़ियों से पेश रहा है। धनाढ्य श्रेष्ठियों के आश्रय में भाटों और भोजकों ने अपना जीवनयापन किया है। इन बहियों में भाटों ने ओसवंश की उद्भव कथा अंकित की है। ___ आबू पर्वत पर अग्निकुंड में चार क्षत्रिय वीर प्रकट हुए, उनसे क्रमश: चौहान, परमार, परिहार और सोलंकी राजकुलों का प्रवर्तन हुआ। परमार के वंशज धांधूजी जूनागढ़ (बाड़मेर के पास) के शासक थे। उनके दो रानियाँ थीं। एक सोलंकी कन्या (जोगीदास की पुत्री) दूसरी रानी के दो संतानें थी, जिसमें एक उपलदेव । उसका विवाह कछवाहा कुल की कन्या से हुआ। एक दिन युवराज उपलदेव ने पनिहारिनों से चुटलबाजी की। पनिहारिनों के घडे फोड दिये। राजकुंवर की शिकायत हुई। उपलदेव ने दूसरे दिन यह चुटलबाजी राजपुरोहित की कन्या से की। उसका भी मिट्टी का घड़ा फोड़ दिया । राजपुरोहित की शिकायत पर राजकुमार को देशनिकाला दिया गया। राजकुवंर को 12 वर्ष का देशनिकाला दिया गया। कुंवरानी भी उनके साथ गई। उनकी तीन सौ गाड़ियों का काफिला ओसिया पहुँचा। उनकी कुलदेवी सचिया माता ने सपने में परचा दिया- 'यह जगह मत छोड़ना। यहीं नगर बसाओ। 60 कदम उत्तर में माया से भरे 99 चरू (धातु के बर्तन) बर्तन मिलेंगे।' सुबह ही राजकुमार के ललाट पर कुंकुम का तिलक देखा। पलंग के नीचे कुआखोदा तो खारा पानी मिला। कुलदेवी ने परचा दिया 'देवी का चढ़ावा नहीं किया, इसलिये पानी खारा निकला। अब चढ़ावा कर देना, पानी मीठा हो जाएगा। पांच दस सरदारों के साथ घोड़ी के साथ दिन भर में जितना गांव को घेर सको, वहाँ तक तुम्हारा राज्य होगा। पहले कुलदेवी का मंदिर बनाना, फिर महल ।' उसने सबसे पहले मंदिर बनाया। देवी ने सच्चा 'परचा' दिया, इसलिये 'सचिया माता' कहलाई। भाट के अनुसार उपलदेव ने संवत् 184 में सचिया माता के मंदिर की नींव रखी। 12 वर्ष बीतने पर उपलदेव माता पिता के दर्शनार्थ गये। एक और विवाह ओसिया में किया था। दोनों कुवराण्या ससुराल गई। राज्य में प्रवेश के पहले संदेश भिजवाया। छोटीरानी मा ने सोचा कि उपलदेव ही अब जूनागढ़ और ओसिया का शासक होगा, मेरे पुत्र को कुछ नहीं मिलेगा। छोटी रानी ने 'मिनखमारों' को बुलाकर आदेश दिया कि उपलदेव को खत्म कर दो। मंदिर में घुसते ही भिनखमारों ने उपलदेव का सिर काट लिया। 1.इतिहास की अमरबेल-ओसवाल,प्रथमखण्ड,पू 101-103 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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