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(2) अथ ओसवालां री उतपत्त रा छप्पय लिख्यते
उपलदेव पवार नगर ओयसा नरेश रा राज रीत भोगवै सकल सचियाय दियो वर नव लख चरू निधान दियो सोनहियां देवी इतव उपर अरिगंज कियो सह पाय न केवी इम करे राज भुगते अदल के इक वर सब दिविया नहिं राजपुत्र, चिता निपट सकत प्रगट कहकत्थिया ।। 1 ।। हो राजा, किण काज करै चिंता मन मांहि थारै उदर सुतन्न वेह अंक लिखिया नांहो जद नृप छै दलगीर दीना वाय क इम दाखै राज बिना सुत राय, राज म्हारो कुण राखै जा नृपत पुत्र होसी हमें घणां नरां पण घटसी हवसी वर्ण संकर जुवा पुव सांध राव लहसी ॥2॥ दियो वरदान पुत्र राजा फल पाये नाम दियो जयचन्द बरस पनरां परणाये पिता पुत्र भडया महल सहलां सुक माणे दिन दिन गढ़ मं छाख का निसाण बजाण उण समौ आये प्रभु रतन ऋषि मास खमण करतो मुरा सिष मेल बहरावा सहर मे धरम लाभ करतो धुरा ||3|| घर घर सिष फिरगयो पर त आहार नहिं पायो बिपर हेक पिण बार वचन रसड़ो बतलायो हो सिख, झोली हात मेल, कर काम हमारो करदयो न संत रोकीयो वले जग साद बिहारो बहु बहर खांड भोजन घिरत ले आये गुरु अगल गुरु कहओ बार लागी घणी कह चेला वृतांत सकल ॥4॥ सिष मुख सुणे वृतांत सहर स्यूँ रि, रिसायो पिवण सरप कर प्रगट महल कवँरा मिलवायो पिवण सरप पीबातां कवँर चेतना न काई सास नहीं बेसास सोग यणप डसँ ताई हाहाकार हुय देस मे दाग दियण सब चल दीना
पड़ पंच करे पूछ्यो उहम मगे आय उभो मुनी ||5|| सिख मुख सुणे वयाण भवर राजा भूलाणो कवण नाम गुरु कठे थए सो दास ठिकाणी ओ खेजड़लो अठे कवँर ने लेय पधारो आहु दीन री अरज स मो काज सुधारो
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