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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 217 गया है कि श्रीरत्नप्रभ वर्धमान के निर्वाण के 52वें वर्ष में आचार्य पद ग्रहण किया और उसके आठ दस वर्ष पश्चात् ओसिया (उएस्या) पधारे । वहाँ तीन लाख चौरासी हजार राजपुत्रों को प्रतिबोध दिया। इस प्रकार रत्नप्रभसूरि ने उएसनगर में ओसवालों की स्थापना की। फिर सभी 18 गोत्रों की स्थापना की। द्वितीय गुटका क्रमांक 7765- ओसवाला उत्पत्ति कवित्त में कुल 16 छप्पय है, जिसमें ओयसा नरेश उपलदेव के जैनधर्म अंगीकार करने की कथा विस्तार से कही गई है। इसमें कहा गया है कि नरेश उपलदेव पंवार संचिया माता ने पुत्र हेतु वरदान दिया। उस समय रत्नप्रभु मासखामण कर रहे थे। उस समय पीवणा सर्प के कारण कुंवर को चेतना नहीं आई। कुंवर का बहुत उपचार किया, किन्तु कोई फल नहीं मिला। उस समय आचार्य रत्नप्रभु ने कुंवर को जीवनदान दिया। उन्होंने जैनधर्म अंगीकार कर लिया। इन्होंने तीन लाख चौरासी हजार राजपुत्रों को प्रतिबोध दिया। इस प्रकार ओसियां के ओसवालों की स्थापना की इसमें सभी राजपूत जातियों के ओसवाल होने की बात कही गई है। यह गुटका वीरात् 70 वर्ष में ओसवंश स्थापना से काफी मेल खाता है। तृतीय गुटका (क्रमांक 501) के अनुसार- एके उगणीश संवत् 39 के श्रावण के शुक्ल पक्ष में परमार उपलदेव ने जैनधर्म अंगीकार किया। साधुओं को ओसिया में घर घर घूमने पर भी आहार नहीं मिला। इन्होंने पीवणा सांप को प्रकट कर राजकुमार को चेतना शून्य कर दिया। इस प्रकार इस पद में संवत् ‘एकै उगणीसे' में ओसवंश की स्थापना का स्पष्ट उल्लेख है। यह गुटका सं. 1835 का लिखा हुआ है। यह कवित्त अधूरा है।' ओश वंस थापन कवित्त श्रीमदिष्ट देवाय नमः श्री वर्धमान जिन थकी बरस वावन पद लिधो, श्री रत्न प्रभ सूरनाम तिहांस गुर धिो । ताऊ अठ दस बरस नय उएस्या आया, प्रतिबोधे चामुंड नाम तिहांसा वलणाया । तीन लाख चउरासी सगस्त्र राजपुत्र प्रतिबोधिया, श्री रत्न प्रभ सूरि उएसनगर उसवाल थिरथपीया। प्रथम गोत तातेड़ बीय बाफणा बाहदर, कह तीजो करणावट रांका बुलह मोराक्ष पोहकरणो। सुहंकर उलहट नै विरहट अखर श्री श्रीमाल बखाणु, नवम वैद मुता भणीजे श्रेष्ठ दसम सुचंती जाणु । आदित्य नाग चोरडिया स भूरि भटेवरा भाई, लघु चिंचट भाई गोत्र लीगा समदड़ीया । लघु श्रेष्ठि कुंभट कोचर मीमु कनोजीया, श्री रत्न प्रभ सूरी उएसनगर उसवाल थीरथपीया ।। 1. इतिहास की अमरबेल-ओसवाल, प्रथम खण्ड, पृ93-98 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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