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आचार्य महाप्रज्ञ - वर्तमान में तेरापंथ के आचार्य महाप्रज्ञ है। आचार्य महाप्रज्ञ ही एक समय मुनि नथमल, फिर युवाचार्य महाप्रज्ञ और अब इस परम्परा के आचार्य हैं । आपकी बौद्धिक चेतना प्रखर है। एक विचारक के रूप में आपके अनेक ग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। 'मैं, मेरा मन, मेरी शांति' में धार्मिक उदारता है। 'तुम अनन्त शक्ति के स्त्रोत हो' में जैनमत के साधना प्रकारों की चर्चा है। नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण' में आज के परिप्रेक्ष्य में नैतिकता का विश्लेषण है। “अतीत का अनावरण में ऐतिहासिक दृष्टि के द्वार-बुद्ध और महावीरकाल भारत के अनधुए ऐतिहासिक पृष्ठों को अनावृत करने का प्रयत्न किया गया है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा
अनेक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संतों और आचार्यों ने जैनमत के प्रचार-प्रसार में योग दिया है।
यशोविजय - उपध्याय यशोविजय को आचार्य हेमचंद्र का आधुनिक संस्करण कहा जा सकता है। पं सुखलाल के शब्दों में ‘इनके समान समन्वय शक्ति रखने वाला, जैन, जैनेतर ग्रंथों का दोहन करने वाला, शास्त्रीय और लौकिक भाषा में विविध साहित्य की रचना कर अपने सरल और कठिन विचारों को सब जिज्ञासुओं तक पहुँचाने वाला और सम्प्रदाय में रहकर भी सम्प्रदाय के बंधन की परवाह न कर जो उचित मालूम हो, उस पर निर्भयतापूर्वक लिखने वाला, केवल श्वेताम्बर दिगम्बर समाज में ही नहीं, बल्कि जैनेत्तर समाज में भी उनके जैसा कोई विशिष्ट विद्वान हमारे देखने में अब तक नहीं आया। केवल हमारी दृष्टि में ही नहीं, परन्तु प्रत्येक तटस्थ विद्वान की दृष्टि में जैन सम्प्रदाय में इन उपाध्याय का स्थान शंकराचार्य के समान है।" उन्होंने अनेक अध्याता और दर्शन ग्रंथों के साथ आगम ग्रंथों की टीकाएं लिखी, योग सम्बन्धी दर्शन ग्रंथों की टीकाएं लिखी। ज्ञान के इस महासागर और अध्यात्म योगी का स्वर्गवास संवत् 1743 को हुआ।
आचार्य हीराविजय सूरि - इस तेजस्वी और चमत्कारी संत को सं 1640 में जगद्गुरु की उपाधि से विभूषित किया । आपका जन्म पालनपुर में 1583 में हुआ, संवत् । 1596 में आचार्य विजयदान सूरि के पास दीक्षाली और संवत् 1610 में आचार्य पद पर आरूढ हुए। आपका प्रभाव अकबर पर पड़ा और आपकी ही प्रेरणा से अकबर ने हिंसा की मनाही करवा दी, कई कैदियों को मुक्त कर दिया और स्वयं अकबर ने आपके वचनामृत सुने।
उपाध्याय विनय विजय और मेघविजय - आप दोनों ने अनेक आगमिक, दार्शनिक और वैयाकरणिक ग्रंथों की रचना की। मेघविजय जी ने ज्योतिष विषयक ग्रंथ और 'शांतिनाथ चरितकाव्य' लिखा।
आचार्य विजयानंद सूरि - पंजाब प्रांत में लटत में संवत् 1893 में आपका जन्म हुआ। 1946 में जोधपुर में आपको 'न्याय महोदधि' की उपाधि से विभूषित किया। आपका
1. ओसवाल दर्शन : दिग्दर्शन, पृ 161 2. वही, पृ 160
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