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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 161 आचार्य श्री भारमल - श्रेष्ठ साधु के प्रतिमान आचार्य श्री भारमल आचार्य भिक्षु के उत्तराधिकारी हुए। आपका जन्म मूंहा राजस्थान में किसनो जी लोढा के यहाँ संवत् 1804 में हआ। संवत् 1813 में बागोर में दीक्षा ली, सं 1817 में दीक्षा और संवत् 1860 में आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए और स्वर्गवास वि.सं 1878 को हुआ। आचार्य श्री रायचंद जी (ऋषि राय) - आपका जन्म वि.सं 1847 और दीक्षा सं 1857 में हुई। आवश्यक चूर्णि', 'दशवैकालिक', 'उत्तराध्ययन' और 'वृहतकल्प' आपको कंठस्थ थे। आप चतरोजी बम के पुत्र थे। आप स्वर्गवास वि.सं 1908 में हुआ। जयाचार्य - तेरापंथ की मर्यादा महोत्सव के जनक जयाचार्य थे। आपने लगभग 3,50,000 पद्यों की रचना की। आप गोलछा परिवार के आईदान जी के पुत्र थे। सं 1860 में जोधपुर के रोहट ग्राम में आपका जन्म हुआ। 9 वर्ष की आयु में दीक्षा और सं 1908 में आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए। आपका स्वर्गवास जयपुर में सं 1938 में हुआ। आचार्य श्री मगराज - मगराज जी पूरणमल बैंगानी के यहाँ सं. 1897 में बीदासर (बीकानेर) में जन्में। दीक्षा लाडनू में संवत् 1908 और आचार्य सं 1938 में हुए और स्वर्गवास सरदारशहर में सं 1945 में हुआ। आप संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे, किन्तु संवाद की भाषा राजस्थानी ही रही। आचार्य श्री माणकचंद - संवत् 1912 में हुकमचंदजी श्रीमाली के यहाँ आप जन्में, 16 वर्ष की आयु में दीक्षित हुए, संवत् 1949 में आचार्य हुए और स्वर्गवास सरदारशहर में सं 1954 में हुआ। आप आचार्य माणक गणि के नाम से प्रसिद्ध थे। आचार्य श्री डालचंद - आप समस्त जैन संघों को एक सूत्र में बांधने के लिये प्रयत्नशील रहे। उज्जैन के कन्नीराम पीपाड़ा के यहाँ आपने संवत् 1909 में जन्म लिया, 14 वर्ष की आयु में दीक्षा ली, संवत् 1954 में आचार्य बने और सं 1966 में स्वर्गस्थ हुए। ___ आचार्य कालूराम (कालूगणि) - आप छापर में मूलचंद जी कोठारी के यहाँ संवत् 1933 में जन्मे, 11 वर्ष की आयु में बीदासर में दीक्षा ली, 33 वर्ष की आयु में आचार्य बने और 60 वर्ष की आयु में गंगापुर में स्वर्गवास हुआ। आप एक महान् अध्येता थे। आचार्य श्री तुलसी - आचार्य श्री तुलसी ने अपने आचार्यकाल में तेरापंथ की ही नहीं, जैनमत को प्रतिष्ठा दिलाई। आप 11 वर्ष की अवस्था में दीक्षित हुए और 22 वर्ष की अल्प अवस्था में आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए । आपके नेतृत्व में तेरापंथ ने आशातीत उन्नति की। आपकी प्रेरणा से ही जैन विश्वभारती, लाडनू ने जैनमत से सम्बन्धित विश्वविद्यालय स्तरीय अध्ययन-अध्यापन के नये द्वार खोले । इस देश का बुद्धिजीवी आचार्य तुलसी को इस शताब्दी का महत्वपूर्ण सन्त और विचारक मानता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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