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पंचमत
षष्टमत
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लेखक 'हार्ट आफ जैनिज्म'
ई सन् 1452
तपागच्छीय यति कांतिविजय वि. स. 1482
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सभी मानते हैं कि लोकाशाह का जन्म कार्तिक पूर्णिमा को हुआ, किन्तु संवत् में मतभेद है। मुनि श्री बीका लोंकाशाह को लघु पोरवाल मानते हैं, किन्तु तपागच्छीय कांतिविजय (वि. स. 1636) इन्हें ओसवंशीय मानते हैं । कांतिविजय जी के अनुसार
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'आ महात्मा नो जन्म अरहड़वाड़ा नी
ओसवाल गृहस्थ चौधरी अटकना रोठ
हेमाभाई नी पतिव्रतपारायण भार्या गंगाबाई नी कुक्षिनी हतो ।
1482 ना कार्तिक शुद पूनम ने दिवसो थयो । '
इनके पिता हेमाशाह ओसवाल थे। मुनि सुशीलकुमार के अनुसार इनका ओसवाल होना अधिक प्रामाणिक है। इनके पिता जौहरी थे। माता केशरबाई धर्मपरायण और पतिपरायणा थी । इनका जन्म सिरोही से 8 मील दूर अरहट्टबाड़ा में हुआ।
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लोकापति भानुचंद्र के अनुसार इनका जन्म सौराष्ट्र के लिंवड़ी ग्राम में श्रीमाली परिवार में हुआ। दिगम्बर रत्ननंदी के 'भद्रबाहु चरित' के अनुसार पाटण के पोरवाल कुल में लोकाशाह का जन्म हुआ ।' लोकायति केशवजी ने सौराष्ट्र के मागवेश ग्राम में सेठ हरिश्चन्द्र के यहाँ हुआ। इनकी माता मदगी बाई थी। नागचंद्रजी की पट्टावली और रूपचंद जी कृत चौपाई में इनका जन्म जालोर माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार सिरोही के पास अरहटवाड़ा ही इनका जन्म स्थान है।
लोकशाह ने दीक्षा ली या नहीं, यह भी विवादास्पद है। वे जन्म से तत्वशोधक थे । शाह ने मूर्तिपूजा का खण्डन किया। 'व्यवहारसूत्र' की चूलिका के अनुसार भद्रबाहु स्वामी स्वर्गवास के पश्चात् मूर्तिपूजा की परम्परा चली। जिनदास महत्तर ने 'आवश्यक चूर्णि' में पूजा का विवेचन किया है -
इदाणिं पूयाकझं पुरस्तात पुज्जा पूजा, द्रव्य, पूया,
हिगा दीणं भाव पूया पर लोगाट्ठिताण । *
1. मुनि कांतिविजय, लोंकाशाह नुंजीवन प्रभुवीर पट्टावली, पृ 161
2. मुनि सुशील कुमार, जैनधर्म का इतिहास, पृ 273
3. दिगम्बर रत्नंदी, भद्रबाहु चरित, पृ90 4. आवश्यक चूर्णि पृ 18
हरिभद्रसूरि ने अष्टपुण्य पूजा का विधान किया । यह अष्टपुष्प पूजा- 'अहिंसा, सत्यास्तेय ब्रह्मचर्यमरांगता गुरुभक्ति स्तपो ज्ञानार्जन सत्पुष्पाणि प्रचक्षते,' कहा है । इस तरह हरिभद्रसूरि के अनुसार - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, गुरूभक्ति, ज्ञानार्जन और
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