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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 114 सग्रहू क्रमाक 308 27. आगमगच्छ 1364ई जीरावलतीर्थ वही, क्रमांक 304 28. तपागच्छ 1228 ई जैनचन्द्रसूरि जैन लेखसंग्रह (नाहर) क्रमांक 394 तपागच्छ की शाखाएँ विजयदेवसूरि तपाशाखा 1675 ई विजयराज तपाशाखा 1534 ई कमलकलश तपाशाखा 1534ई वृहदपोसाल तपाशाखा 1526 ई लघु पोशाल तपाशाखा 1526 ई सागर गच्छ तपाशाखा 1557 ई विजयानन्द सूरि तपाशाखा 1600 ई आगमीय तपाशाखा 1300 ई ब्राह्मी तपाशाखा 1576 ई नागौरी तपाशाखा 1526 ई इस प्रकार श्वेताम्बर मन्दिर मार्गी परम्परा में अनगिनत गच्छों ने जहाँ सम्प्रदायभेद को पल्लवित पोषित किया, वहीं मुनियों और आचार्यों ने ओसवंश के प्रवर्द्धन, विकास, प्रसार और उत्कर्ष में भी योग दिया। वैचारिक क्रांति युग : लोंकाशाह काल (लोकाशाह से आज तक) जैनमत के इतिहास में लोकाशाह के आविर्भाव को जैनमत के इतिहास में वैचारिक क्रांति का युग कह सकते हैं। लोंकाशाह ने समाज की रूढ़िवादिता और जड़ता को समाप्त करने के लिये अपने प्राणों के प्रदीप्त को प्रज्ज्वलित किया और जड़पूजा की जगह गुणपूजा की प्रतिष्ठा की।' लोकाशाह को जैनमत का कबीर कहा जा सकता है। लोकाशाह ने समाज की शिथिलताओं और कुमान्यताओं को जड़ से उखाड़ फेंका। महावीर के निर्वाण के ठीक 2000 वर्ष पश्चात् वीर संवत् 2001 में लोकाशाह ने क्रान्ति का बिगुल बजाया। क्रांति के अग्रदूत लोकाशाह जीवन की असद् वृत्तियों के उच्छेदक थे। लोंकाशाह को जैनमत का मार्टिन लूथर भी कह सकते हैं। लोकाशाह के जन्म वर्ष के सम्बन्ध में विवाद है प्रथममत : मुनि श्री बीका वीर संवत 1945 अर्थात् वि.स. 1475 द्वितीय मत : लोकायति भानुचंद वि.सं. 1482 तृतीय मत : लोंकगच्छीय यति केशव वि.स. 1477 चतुर्थमत : क्षितिमोहनसेन वि.स. 1486 1. मुनि सुशीलकुमार, जैनधर्म का इतिहास, पृ 262 2. वही, पृ270 For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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