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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 83 बौद्ध उल्लेख के अनुसार गोशालक को नन्दवक्ख और किस्स संकिक्क को अचेलक परिव्राजक सम्प्रदाय का उत्तराधिकारी बताती है । ' डा. हर्नले के अनुसार "बौद्ध साहित्य में गोशालक के दो साथी बताए जाते हैं - किस्स संकिच्य और नन्दवक्ख । महावीर से अलग होने के पश्चात् इन तीनों ने श्रावस्ती से एक सम्प्रदाय नाते नेता के रूप में एकाकी जीवन बिताना शुरू किया। "2 देवसेन के 'दर्शनसार' (वि.स. 990) में प्रारम्भ में बुद्ध को पार्श्वनाथ की परम्परा के निर्ग्रथ का शिष्य बताया है, वैसे ही मस्करीपुरण साधु (मक्खली गोशालक) को भी पार्श्वनाथ की परम्परा में दीक्षित बतलाया गया है । " 'धम्मपद' की बुद्धघोष कृत टीका में निर्ग्रथों और अचेलकों में भेद किया गया है । उसके अनुसार अचेलक बिल्कुल नग्न होते हैं, जबकि निर्ग्रथ मर्यादा की रक्षा के लिये एक प्रकार आवरण का उपयोग करते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर के समय के अन्य सम्प्रदायों के नेताओं में पूरणकश्यप ने यह सोचकर कि दिगम्बर रहने से मेरी विशेष प्रतिष्ठा होनी, कपड़े पहनना स्वीकार नहीं किया । आजीवक सम्प्रदाय के साधु नग्न रहते थे, किन्तु उत्तरकाल के लेखकों ने नग्नता को आजीविकों के साथ जोड़ दिया और दिगम्बरों को ही गोशालक या आजीविकों का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यह माना गया है कि यदि दिगम्बर सम्प्रदाय आजीविकों से निकला होता या आजीविक ही आगे चलकर दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में परिवर्तित हो गये होते तो आजीविक सम्प्रदाय के संस्थापक गोशालक की विचारधारा का कुछ अंश तो उसमें अवश्य ही परिलक्षित होता । "" किन्तु हार्नली ने आजीविक सम्प्रदाय का उत्तराधिकारी दिगम्बर सम्प्रदाय को माना है। शीलांक ने अपनी टीका में और हलायुध ने अपनी 'अभिधान रत्नमाल' में दिगम्बरों और आजीविकों को एक बतलाया है तथा प्राचीन तमिल साहित्य में जैन के लिये आजीविक शब्द का प्रयोग किया जाता है। छठी शताब्दी से वराहमिहिर ने आजीविक शब्द का प्रयोग किया है, यह दिगम्बर जैनों सूचक है। श्रीमती स्टीवेंसन के अनुसार “सम्भावना है कि जैन समाज में सदा से दो पक्ष रहे हैंएक वृद्धों और कमजोरों का, जो पार्श्वनाथ के समय से वस्त्र धारण करते करते आते हैं, जिसे 1. Sacred Books of the East, Part 45, Page 29 The Budhist records speak of him as successor of Nandvikha and Kissa Samkika. 2. Encyclopaedia, Ethics & Religion, Part 1, Page 267. 3. देवसेन, दर्शन सार, श्लोक 21 सिरिवीरणाहतिहत्थे वहुस्सुदो पास संघ गणिसी सो । पूरण साहू अण्णाणं भासए लोए ॥20॥ 4. जैन साहित्य का इतिहास, पृ429 5. Encyclopaedia, Ethics & Religion, Part 1, Page 266. For Private and Personal Use Only
SR No.020517
Book TitleOsvansh Udbhav Aur Vikas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavirmal Lodha
PublisherLodha Bandhu Prakashan
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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