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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये ते भगवंतो रागदोसनिग्गहपरा मा य पडिमाए वा पाउयाण वा रागहोसा न भवति । इति प्रावरणविचारः ।। रसपरिच्चागं न करेइ निश्चमेव विगइपडिबद्धो कार्याकलेसन करेइ ठाणासणमोणाईणि पायच्छित्तं विसंभोगा वा। इति रसत्यागविचार: ॥ चोए चेइआणं खेतहिरण्णाइ गामगावाई। लग्गतस्स व जइणो तिगरणसाही कहं नु भवे ? ॥ १५६९ ।। भण्णइ एत्थ विभासा जो एयाई सयं विमग्गेजा। न हु तस्स होइ सोही अह कोइ हरेज एगाई ॥१५७०।। तत्थ करित उवेहं जा सा भणिया तु तिगरणविसोही। सा य न होइ अभत्ती य तस्स तम्हा निवारेजा ।। १५७१॥ उपेक्षां कुर्वाणे त्रिकरणशुद्धिर्न भवति अभक्तिश्च कृता स्यात् तस्माभिधारयेदित्यर्थो ज्ञेयः । सव्वत्थामेण तहिं संघेणं होइ लग्गियव्यं तु । सचरित्तऽचरित्ताण उ सम्वेसिं एय कज तु॥१५७२ ।। चूणिस्तु-रुप्प हिरण्णवण्णाइ साहुणा आयठिरण तवनियमजुत्तेण चेयनिमित्तं रुप्पाहरण्णसुवणं अव्वं उपाएइ, तस्स माणदरिसणचरित्तमणोकरणाइया तिगरणसोही न भवइ । जया पुण पुवपवत्ताणि खेत्तहिरण्ण-दुपयचउप्पयाई जइ भंड वा चेइमाणं लिंगत्था वा चेइयदव्वं राउलबलेण खायंति, रायभडाइ वा अच्छिदेजा, तया तवनियमसंपउत्तो वि साहू जइ न मोपइ वावार वा न करेइ, तया तस्स नाणाइसुद्धी न भवइ, आसायणा य भवइ । एवं समुप्पन्ने कज्जे रायाईणं पुवं अणुसट्ठी करेइ, धम्मो वा से कहिजर, अणिच्छंतस्स अंतद्धाणेण वा अवहरति । इति देवद्रव्यविचार: पञ्चकल्पे ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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