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पश्वकल्पस्य विचारा:
७७
नाणकसायकुसीले दसणचरणे य लिंग अहसुहुमे । एस कसायकुसीले पंचविहो ऊ मुणेयवो ॥ ८९॥ पढमगसमयनियंठे १ अपढम २ चरिमे य ३ अचरिमए चेव ४। तत्तो अहासुहुमे पंचमए होइ नायवो ॥ ९० ॥ पंचविहसिणाए ऊ अच्छवि तह असवले अकम्मंसे । संसुद्धनाणदंसणधरे य होई चउत्थे उ ॥ ९१ ॥ अरहा जिणे उ केवलि अपरिस्साई य होइ पंचमए । पए पंच विगप्पा सिणायस्स तो हुँति नायव्वा ।। ९२ ॥ पंचविह संजया वी सामाइयछेउबट्टपरिहारे । सुहुमे य अहक्खाए एकेके ते पुणो दुविहा ॥ ९३ ॥ इत्तरिए आवकही सामाइयसंजए भवे दुविहे । दुविहे य छेउवढे सइयारे निरइयारे य ॥ ९४ ॥ परिहारविलुद्धीए निविसमाणे तहेव निविबढे । दुविहे य सुहुमरागे संकिस्संते विसुझंते ॥ ९५ ॥ अहखाओ वि य दुविहो छउमत्थो चेव केवली चेव । एसो उ संजओ खलु पंचविहो होइ नायव्यो ॥ ९६ ॥ सामाइयम्मि उ कर चाउजाम अणुत्तरं धम्मं । तिविहेण वि फासिंतो सामाइयसंजओ स खलु ॥९७॥ छनण उ परियागं पोराणं तो ठवेइ अप्पाणं । धम्मम्मि पंचजामे छेआंवट्ठावणो स खलु ॥ ९८ ॥ परिहरइ जो विसुद्ध पंचज्जामं अणुत्तरं धम्म । तिविहेण फासयंतो परिहारियसंजओ स खलु ॥ ९९ ।। लोभमणुं वेयंती जो खलु उवसामओ व खमओ वा । सो सुहुमसंपराओ अहक्खाया ऊणओ किंचि ॥१०॥
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