SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir पश्वकल्पस्य विचारा: ७७ नाणकसायकुसीले दसणचरणे य लिंग अहसुहुमे । एस कसायकुसीले पंचविहो ऊ मुणेयवो ॥ ८९॥ पढमगसमयनियंठे १ अपढम २ चरिमे य ३ अचरिमए चेव ४। तत्तो अहासुहुमे पंचमए होइ नायवो ॥ ९० ॥ पंचविहसिणाए ऊ अच्छवि तह असवले अकम्मंसे । संसुद्धनाणदंसणधरे य होई चउत्थे उ ॥ ९१ ॥ अरहा जिणे उ केवलि अपरिस्साई य होइ पंचमए । पए पंच विगप्पा सिणायस्स तो हुँति नायव्वा ।। ९२ ॥ पंचविह संजया वी सामाइयछेउबट्टपरिहारे । सुहुमे य अहक्खाए एकेके ते पुणो दुविहा ॥ ९३ ॥ इत्तरिए आवकही सामाइयसंजए भवे दुविहे । दुविहे य छेउवढे सइयारे निरइयारे य ॥ ९४ ॥ परिहारविलुद्धीए निविसमाणे तहेव निविबढे । दुविहे य सुहुमरागे संकिस्संते विसुझंते ॥ ९५ ॥ अहखाओ वि य दुविहो छउमत्थो चेव केवली चेव । एसो उ संजओ खलु पंचविहो होइ नायव्यो ॥ ९६ ॥ सामाइयम्मि उ कर चाउजाम अणुत्तरं धम्मं । तिविहेण वि फासिंतो सामाइयसंजओ स खलु ॥९७॥ छनण उ परियागं पोराणं तो ठवेइ अप्पाणं । धम्मम्मि पंचजामे छेआंवट्ठावणो स खलु ॥ ९८ ॥ परिहरइ जो विसुद्ध पंचज्जामं अणुत्तरं धम्म । तिविहेण फासयंतो परिहारियसंजओ स खलु ॥ ९९ ।। लोभमणुं वेयंती जो खलु उवसामओ व खमओ वा । सो सुहुमसंपराओ अहक्खाया ऊणओ किंचि ॥१०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy