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नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये समणाण' देज जो वा संजय सोवहियं विक्किणित्ता तं फासुग समणाण देज तं कि कप्पइ न कप्पइ वा? उच्यते इत्याह यथा
चेइयदव्व विभया करेज कोई नरो सयट्टाए । समण वा सोहिय, विकेजा संजयद्राए ॥ एयारिसंमि दवे समणाण विष्णु कप्पप घेतु ? । चेइयदवेण कयं मोलेग वज्जं सुविहियाण ॥ तेणपडिच्छा लोए वि गरहिया उत्तरे विमंग पुण । चेइय अइ पडिणीए जो गेण्हइ सो वि हु तहेव ॥ (६३, ६४) जा तित्थयराण कया वंदण आवरिसणाइ पाहुडिया। भत्तीए सुरवरहिं समणाण तहिं कहं भणिय ? ॥ (६६) चूणियथाउच्यते (भगवतः) प्रवचनातीतत्वात् कल्पते । किं चान्यत् जह समणाण न कप्पा, पथं एगाणिना जिणवरिंदा । गणहरमाई समणा अप्पर वेब चिटुंति ॥ ६७ ॥ तम्हा कप्पइ ठउ जह सिद्ध माटाणाम होइ अविरुद्धं । जम्हा उन सामी सत्था अम्ह तओ कप्पे ॥ ६८ ॥ चूर्ण्यक्षराणि यथा
जत्थ निस्सा नस्थि तत्थ कम्पा सिद्धाययणे ठाइउ, किं कारणं ? उच्यते--
साहम्मियाण अटला चउविही लिंगओ जह कुटुंबी । मंगलसासयभत्तीए ज कयं तत्थ आएसो ॥ ६९ ॥ पूर्वेक्ता कल्पे। ऐसा जत्थ निस्सा नत्थि तस्थ वि चेयधरे न कल्पते ठाउं, इमेण कारणेण
जइवि न आहाकम्म भत्तिकय तह वि वजयंतेहि। भत्ती खलु होइ कया जिणांण लोगे वि दिटुं तु ॥ बंधित्ता कासवओ वयण अट्टपुडसुद्धपोत्तीए । पत्थिवमुवासप खलु वित्तिनिमित्त भया चेव ।। (७०, ७१) चूर्णिस्तु एवं-रायस्थाणीयस्स तित्थगरपडिमाभत्तिनिमित्त । मा चाउनिसगो उस्सासनिस्सास निया (निग्गमा) विस्संति तेण न
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